क्या दरख्तों और ताकों में शहीद मर्द रहते हैं❓


क्या दरख्तों और ताकों में शहीद मर्द रहते हैं❓

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कुछ लोग कहते हैं कि फलां दरख्त पर शहीद मर्द रहते हैं या फला ताक में शहीद मर्द रहते हैं और उस दरख्त और उस ताक के पास जाकर फ़ातिहा दिलाते हैं हार फूल खुशबू वगैरा डालते हैं लोबान अगरबत्ती सुलगाते हैं और वहाँ मुरादे मांगते हैं यह सब ख़िलाफ़े शरअ और गलत बातें है । जो बर बिनाए जहालत अवाम मे राइज हो गई हैं इनको दूर करना निहायत ज़रूरी है । हक यह है कि ताकों, महराबों दरख्तों वगैरा पर महबूबाने खुदा का कियाम करार देकर वहाँ हाज़िरी नियाज फ़ातिहा अगरबत्ती मोमबत्ती जलाना हार फूल डालना खुशबूयें मलना चूमना चाटना हरगिज़ जाइज़ नहीं

आलाहज़रत रदियल्लाहु तआला अन्हु इन बातों के मुतअल्लिक फरमाते हैं यह सब वाहियात व खुराफ़ात और जाहिलाना हिमाकात व व बतलात हैं इनका इजाला लाज़िम है

📚 (अहकामे शरीअत हिस्सा अव्वल सफ़हा ३२)

आजकल कुछ लोग इन हरकतों से रोकने वालों को वहाबी कह देते हैं हालांकि किसी मुसलमान को वहाबी कहने में जल्दी नहीं करना चाहिए जब तक कि उसके अकाइद की खूब तहकीक न हो जाए और ख़िलाफ़ शरअ हरकतों और बिदअतों से रोकना तो अहले सुन्नत का ही काम है वहाबी तो उसको कहते हैं जो अल्लाह और उसके महबूब हज़रत मुहम्मद मुस्तफा और बुजुर्गाने दीन की शान में गुस्ताखी व बेअदबी करता हो या जान कर गुस्ताख़ों की तहरीक में शामिल हो उनको अच्छाई जानता हो । वहाबी किसे कहते हैं इसको तफ़सील के साथ मैंने अपनी किताब दरमियानी उम्मत लिख दिया है यह किताब उर्दू और हिन्दी में अलग अलग छप चुकी है हासिल करके मुतालआ कर लिया जाए 


📚 (ग़लत फहमियां और उनकी इस्लाह, सफ़्हा न.147)

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✍🏻 अज़ क़लम 🌹 खाकसार ना चीज़ मोहम्मद शफीक़ रज़ा रिज़वी खतीब व इमाम (सुन्नी मस्जिद हज़रत मनसूर शाह रहमतुल्लाह अलैह बस स्टॉप किशनपुर अल हिंद)

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