दाढ़ी और मूंछ का शर‌ई हुक्म


दाढ़ी और मूंछ का शर‌ई हुक्म

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हदीस शरीफ़

हुज़ूर नबी ए करीम सल्लललाहू तआला अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया मुश्रेकीन (यानी जो अल्लाह के सिवा किसी और को ख़ुदा माने और उसकी पूजा करे जैसे हिन्दू व सिख़ वगैराह) की मुखालिफत करो (इस तरह के)

दाढ़ीयों को बढ़ाओ और मूंछों को कतरवाओ

📕 बुखारी शरीफ जिल्द 2.सफा 875

एक और रिवायत में है के मूंछों को खूब कम करो और दाढ़ीयों को बढ़ाओ 📕 अनवारुल हदीस. सफ़ा 325) 📚 हदीस शरीफ़

हुज़ूर सल्लललाहू तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया जो अपनी मूंछ न काटे वो हममें से नहीं है(यानी हमारे तरीक़े के खिलाफ है 📕 नसाई शरीफ़, जिल्द 2, सफा 274 📕 मिश्कात शरीफ़, सफा 381, हदीस शरीफ़

हुज़ूर सल्लललाहू तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया मूंछें कटाओ और दाढ़ीयां बढ़ाओ (इस तरह) मजूसीयों (आग की पूजा करने वाला) की मुखालिफत करो 📕 मुस्लिम शरीफ़, जिल्द 1, सफा 129

ज़रूरी मस‌अला

आज कल मुसलमानों ने दाढ़ी में तरह तरह का फ़ैशन निकाल रखा है अक्सर लोग बिल्कुल सफ़ाया कर देते हैं कुछ लोग सिर्फ ठोड़ी पर ज़रा सी दाढ़ी रखते हैं ब‌अज़ लोग एक दो अंगुल दाढ़ी रखते हैं और अपने को मुत्तबा ए शरीअत (शरीअत का पाबंद) समझते हैंं हालांके दाढ़ी का बिल्कुल सफ़ाया कराने वाले और दाढ़ी को एक मुस्त से कम रखने वाले दोनों शरीअत की नज़र में यकसां (एक जैसे) हैं 📕 बहार ए शरीअत, हिस्सा 16, सफा 197

बहार ए शरीअत मे है दाढ़ी बढ़ाना सुनन ए अम्बिया ए साबिकी़न से है दाढ़ी मुंडाना या एक मुस्त से कम करना हराम है

📕 बहार ए शरीअत, मुसन्निफ़ शागिर्द व ख़लीफा ए आला हज़रत हुज़ूर अमजद अली (रज़ी अल्लाहु त‌आला अन्हुमा)

हज़रत शैख़ अब्दुल हक़ मुहद्दिस देहलवी रहमातुल्लाहि तआला अलैह फ़रमाते हैं दाढ़ी मुंडाना हराम है और अंग्रेज़ों हिन्दुओं और क़लनंदरों का तरीक़ा है और दाढ़ी को एक मुस्त तक छोड़ देना वाजिब और जिन फ़ुक़हा ए उम्मत ने एक मुस्त दाढ़ी रखने को सुन्नत क़रार दिया है तो वो इस वजह से नहीं के उनके नज़दीक वाजिब नहीं बल्के इस वजह से के या तो यहां सुन्नत से मुराद दीन का चालू रास्ता है या इस वजह से के एक मुस्त का वुजूब हदीस शरीफ़ से साबित है, जैसा के नमाज़ ए ईदैन को मसनून फ़रमाया हालांके नमाज़ ए ईदैन वाजिब हैै 📕 अश्अतुल लम‌आत जिल्द 1 सफा 212

दाढ़ी जब के एक मुस्त से कम हो तो उसको काटना जिस तरह के ब‌अज़ मग़रिबी (West) और ज़नाने (Ledis) ज़नख़े (हिजड़े) करते हैं

किसीके नज़दीक हलाल नहीं और कुल दाढ़ी सफ़ाया करना ये काम तो हिन्दुस्तान के यहूदियों और ईरान के मजूसीयों का है

📕 दुर्रे मुख़्तार माअ रद्दुल मोहतार जिल्द 2, सफा 116, 117 📕 बहरुर्राइक़ जिल्द 2 सफ़ा 280 📕 फतहहुल क़दीर जिल्द 2. सफ़ा 270 📕 तहतावी सफ़ा 411

✍🏻 मस‌अला

हद ए शर‌अ यानी एक मुस्त से कुछ ज़ाइद दाढ़ी रखना जाइज़ है लेकिन हमारे अइम्मा व जमहूर ए उल्मा के नज़दीक इसका तूल (लम्बाई) फ़ाहिश के जो हद ए तनासिब से ख़ारिज और बाइस ए अंगुश्त नुमाई हो मकरूह व न पसंदीदा है, (यानी एक मुस्त दो अंगुल से ज़्यादा दाढ़ी रखना जाइज़ नहीं है)

📕 लम्‌आतुज़्ज़ुहा

📝नोट:- मकसद सिर्फ और सिर्फ इस्लाह की है किसी का दिल दुखा हो तो माफ करना

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कत्बा अल अब्द खाकसार नाचीज़ मोहम्मद शफीक़ रजा़ रज़वी ख़तीब व इमाम सुन्नी मस्जिद हज़रत मन्सूर शाह रहमतुल्लाह अलैहि बस स्टैंड किशनपुर जि़ला फतेहपुर उत्तर प्रदेश

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