क़ज़ा नमाज़ का बयान!?



सवाल अदा और क़ज़ा किसे कहते हैं

जवाब किसी इबादत को उसके वक़्ते मुक़र्ररह पर बजालाने को अदा कहते हैं और वक़्त गुज़र जाने के बाद अमल करने को क़ज़ा कहते हैं

सवाल किन नमाज़ों की क़ज़ा ज़रूरी है

जवाब फ़र्ज़ नमाज़ों की क़ज़ा फ़र्ज़ है वित्र की क़ज़ा वाजिब है और फ़जर की सुन्नत अगर फ़र्ज़ के साथ हो और ज़वाल से पहले पढ़े तो फ़र्ज़ के साथ सुन्नत भी पढ़े और ज़वाल के बाद पढ़े तो सुन्नत की क़ज़ा नहीं, और फ़जर की फ़र्ज़ नमाज़ पढ़ली और सुन्नत रह गई तो बीस (20) मिनट दिन निकलने से पहले इसकी क़ज़ा पढ़ना गुनाह है, और ज़ोहर या जुमा के पहले की सुन्नतें क़ज़ा हो गईं और फ़र्ज़ पढ़ली अगर वक़्त ख़त्म हो गया तो उन सुन्नतों की क़ज़ा नहीं और अगर वक़्त बाक़ी है तो पढ़े और अफ़ज़ल ये है के पिछली सुन्नतें पढ़ने के बाद उनको पढ़े, (यानी फ़र्ज़ के बाद की सुन्नत पढ़ने के बाद नफ़्ल नमाज़ से पहले)
📚 दुर्रेमुख़्तार

सवाल छूटी हुई नमाज़ किस वक़्त पढ़ी जाए

जवाब छः (6) या उससे ज़्यादा छूटी हुई नमाज़ें पढ़ने के लिए कोई वक़्त मुक़र्रर नहीं है हां जल्द पढ़ना चाहिए ताख़ीर नहीं करना चाहिए (वक़्त गुज़ारना नहीं चाहिए) और उम्र में जब भी पढ़ेगा बरीउल ज़िम्मा हो जाएगा लेकिन सूरज निकलने और डूबने और ज़वाल के वक़्त क़ज़ा नमाज़ पढ़ना जाइज़ नहीं
📚 फ़तावा आलम गीरी

सवाल अगर पांच (5) या उससे कम नमाज़ें क़ज़ा हों तो उन्हें कब पढ़ना चाहिए

जवाब जिस शख़्स की पांच (5) या उससे कम नमाज़ें क़ज़ा हों वो साहिबे तर्तीब है उस पर लाज़िम है के वक़्ती नमाज़ से पहले क़ज़ा नमाज़ें बिल तर्तीब पढ़े, अगर वक़्त में गुंजाइश होते हुए वक़्ती नमाज़ पहले पढ़ली तो ना हुई इस मसअले की मज़ीद तफ़्सील
📚 बहारे शरीअत में देखना चाहिए

सवाल अगर कोई नमाज़ क़ज़ा हो जाए मसलन फ़जर की नमाज़ तो नियत किस तरह करनी चाहिए

जवाब जिस रोज़ और जिस वक़्त की नमाज़ क़ज़ा हो उस रोज़ और उस वक़्त की नियत क़ज़ा में ज़रूरी है मसलन अगर जुमा के रोज़ फ़जर की नमाज़ क़ज़ा हो गई तो इस तरह नियत करे
नियत की मेंने दो (2) रकअत नमाज़ क़ज़ा जुमा के फ़जर फ़र्ज़ की अल्लाह तआला के लिए मुंह मेरा तरफ़ कअबा शरीफ़ के अल्लाहू अकबर इसी पर दूसरी नमाज़ों की नियत को क़यास करना चाहिए

सवाल अगर महीना दो (2) महीना या साल दो (2) साल की नमाज़ें क़ज़ा हो जाएं तो नियत किस तरह करनी चाहिए,

जवाब ऐसी सूरत में जो नमाज़ मसलन ज़ोहर की क़ज़ा पढ़नी है तो इस तरह नियत करे
नियत की मेंने चार रकअत नमाज़ क़ज़ा जो मेरे ज़िम्मा बाक़ी हैं उनमें से पहले ज़ोहर फ़र्ज़ की अल्लाह तआला के लिए मुंह मेरा तरफ़ कअबा शरीफ़ के अल्लाहू अकबर
और अगर मग़रिब की पढ़नी हो तो यूं नियत करे
नियत की मेंने तीन रकअत नमाज़ क़ज़ा जो मेरे ज़िम्मा बाक़ी हैं उनमें से पहले मग़रिब फ़र्ज़ की अल्लाह तआला के लिए मुंह मेरा तरफ़ कअबा शरीफ़ के अल्लाहू अकबर
इसी तरीक़े पर दूसरी क़ज़ा नमाजों की नियत को समझना चाहिए

सवाल क्या क़ज़ा नमाज़ों की रकअतें भी ख़ाली और भरी यानी बग़ैर सूरत और सूरत के पढ़ी जाती है

जवाब हां जो रकअतें अदा में सूरत के साथ पढ़ी जाती हैं वो क़ज़ा में भी सूरत के साथ पढ़ी जाती हैं और जो रकअतें अदा में बग़ैर सूरत के पढ़ी जाती हैं वो क़ज़ा में भी बग़ैर सूरत के पढ़ी जाती हैं
📚 बहारे शरीअत

सवाल बअज़ लोग शबे क़द्र या रमज़ान के आख़िरी जुमा को क़ज़ा ए उमरी के नाम से दो (2) या चार (4) रकअत पढ़ते हैं और ये समझते हैं के उम्र भर की क़ज़ा इसी एक नमाज़ से अदा हो गई तो इसके लिए क्या हुक्म है

जवाब ये ख़्याल बातिल है ता वक़्त ये के (जबतक) हर एक नमाज़ की क़ज़ा अलग-अलग ना पढ़ेंगे बरीउल ज़िम्मा ना होंगे
📚 बहारे शरीअत

सवाल बअज़ लोग बहुत सी फ़र्ज़ नमाज़ें जो उनसे क़ज़ा हो गईं हैं उसे नहीं पढ़ते और नफ़्ल पढ़ते हैं तो उनके लिए क्या हुक्म है

जवाब उन लोगों को फ़र्ज़ नमाज़ों की क़ज़ा जल्द पढ़ना निहायत ज़रूरी है इसलिए ख़ाली नफ़्लों की जगह भी उन लोगों को क़ज़ा ही पढ़ना चाहिए
📚 फ़तावा रज़वियह, शरीफ़)📗 अनवारे शरीअत उर्दू, सफ़ह 74/75/76/77)

कत्बा अल अब्द खाकसार नाचीज़ मोहम्मद शफीक़ रजा़ रज़वी ख़तीब व इमाम सुन्नी मस्जिद हज़रत मन्सूर शाह रहमतुल्लाह अलैहि बस स्टैंड किशनपुर जि़ला फतेहपुर उत्तर प्रदेश

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