सवाल
अगर कोई चार जुम्मा लगातार ना पढ़े तो उसके लिए क्या हुक्म है
साईल अली असगर अंसारी (नौतानवा महाराजगंज)
जवाब
जुम्मा फर्ज़ ए ऐन है उसकी फर्ज़ीयत ज़ोहर से ज़्यादा मोअक़ीदा है इसका इन्कार करने वाला काफीर है
हदीस पाक में है जिसने तीन जुम्मा बराबर छोड़े उसने इस्लाम को पीठ के पीछे फेंक दिया वह मुनाफिक़ है वह अल्लाह से बे इलाक़ा है
📚 (क़ानून ए शरीअत कामिल, जुम्मा का बयान)
हदीस पाक 🌸 मुस्लिम अबू हुरैरा व इब्ने उमर से और निसाई व इब्ने माजा व इब्ने अब्बास इब्ने उमर रज़ि अल्लाहू ताला अन्हुम से रावी, हुजूर अक़द्दस ﷺ फरमाते हैं लोग जुम्मा छोड़ने से बाज़ आएंगे या अल्लाह तआला उनके दिलों पर मोहर कर देगा फिर गाफेलिन में हो जाएंगे
📚 (बहार ए शरीअत हिस्सा ४ सफा७५७)
हदीस पाक 🌸 हुजूर ﷺ फरमाते हैं जो बगैर उज़्र जुम्मा छोड़े एक दिनार सदक़ा दे और अगर ना पाए तो आधा दिनार और यह दिनार तस्दीक़ करना शायद इसलिए हो कि कुबूले तौबा के लिए मोअय्यन हो वरना हक़ीक़तन तो तौबा करना फर्ज़ है
📚 (बहार ए शरीअत हिस्सा ४ सफा ७५८)
उसे चाहिए कि तौबा करे और आइंदा जुम्मा ना छोड़ने का पक्का वादा करले अल्लाह बख्श ने वाला है
वल्लाहु आलम बिस्सावाब
✍🏼 अज़ क़लम 🌹 मोहम्मद रिज़वानुल क़ादरी सेमरबारवी (दुदही कुशीनगर)
✍🏻 इस्लाह करदा 🌹 मौलाना मोहम्मद रफीक़ हुज़ूरी साहब क़िबला (पूर्णिया बिहार)
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