उजरत लेकर कुरान पढ़ना कैसा


सवाल कुछ लोग कहते हैं कि तालीमे क़ुरआन पर उजरत लेना हराम है क्या यह सही है

अल जवाब यह हुक्म पहले था लेकिन इस दौर में तालीमे क़ुरआन पर उजरत लेना नाजाइज़ व हराम नहीं बल्कि जाइज़ है

फ़तावा क़ाज़ी ख़ान में है

واما الذي اخذا المعلم، قالوا لاباس للمعلم ان ياخذ لاجرة على تعليم القران فى هذالزمان

यानी फ़ी ज़माना मुअल्लिम व मुदर्रिस जो तालीमे क़ुरआन पर उजरत लेते हैं उसमें कोई हर्ज नहीं बेशक जाइज़ है, जो लोग नाजाइज़ व हराम कह रहे हैं, वह दर'हक़ीक़त मसाइले शरईयह व फ़िक़्हियह से ना वाक़िफ़ हैं

अगर ऐसा हो जाए तो तालीमे क़ुरआन का बहुत बड़ा फ़क़दान होगा, क्योंकि आज के दौर में बग़ैर रुपया पैसा के कोई काम करना और करवाना बहुत ही मुश्किल है

हर आदमी को उसकी ज़रूरत है कोई भी बेकार में अपना टाइम नहीं दे सकता इसी बिना पर उल्मा व फ़ुक़हा व मुताख़्ख़िरीन ने दौरे हाज़िर में तालीमे क़ुरआन पर उजरत लेने को जाइज़ फ़रमाया

📚 फ़तावा क़ाज़ी ख़ान जिल्द 3, सफ़ह 101, किताबुल हज़र वल इबाहत)

📔 औरतों के जदीद और अहम मसाइल सफ़ह.130)

कत्बा अल अब्द खाकसार नाचीज़ मोहम्मद शफीक़ रजा़ रज़वी ख़तीब व इमाम सुन्नी मस्जिद हज़रत मन्सूर शाह रहमतुल्लाह अलैहि बस स्टैंड किशनपुर जि़ला फतेहपुर उत्तर प्रदेश

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