क्या नाबीना (यानी अंधे) से पर्दा करना ज़रूरी है



सवाल क्या औरत को नाबीना (यानी अंधे) से पर्दा करना ज़रूरी है

अल जवाब औरत को अंधे से परदा करना लाज़िम है क्योंकि वह भी मिस्ले अजनबी के हैं और रसूले करीम सल्लल्लाहू तआला अलैही वसल्लम ने उम्मेहातुल मोमिनीन अज़वाजे मुतह्हरात रज़िअल्लाहू तआला अन्हीन को हज़रत अब्दुल्लाह इब्ने उम्मे मकतूम नाबीना सहाबी से पर्दा करने का हुक्म फ़रमाया

जैसा के मिश्कात बाबुन्नज़र में है के
एक दिन रसूलल्लाह सल्लल्लाहू तआला अलैही वसल्लम अपनी दो बीवियों हज़रत उम्मे सलमा और मैमूना रज़िअल्लाहू तआला अन्हुमा के पास तशरीफ़ फरमा थे कि अचानक अब्दुल्लाह इब्ने उम्मे मकतूम रज़िअल्लाहू तआला अन्ह जो कि नाबीना थे आ गए तो आप सल्लल्लाहू तआला अलैही वसल्लम ने उन दोनों बीवियों से फ़रमाया

احتجبا منه

यानी उनसे पर्दा करो उन्होंने अर्ज़ किया या रसूलल्लाह

اليس هو اعمى لايبصرنا

क्या वह नाबीना नहीं वह हमें नहीं देख सकेंगे तो आप सल्लल्लाहू तआला अलैही वसल्लम ने फ़रमाया 

افعميان وان انتماالستما تبصر انه

क्या तुम दोनों भी नाबीना हो क्या तुम उन्हें नहीं देखोगी

📔 मिश्कात सफ़ह 269)

इस हदीस शरीफ़ से मालूम हुआ के सिर्फ़ यही ज़रूरी नहीं कि मर्द औरत को ना देखे बल्कि यह भी ज़रूरी है कि अजनबी औरत ग़ैर मर्द को ना देखे

देखिए यहां मर्द नाबीना सहाबी हैं मगर पर्दा का हुक्म दिया जा रहा है, ग़ौर कीजिए कि वह ज़माना निहायत खैरो बरकत का और यह ज़माना शर व फ़साद का उस वक़्त आम मर्द परहेज़गार और अब निहायत आज़ाद और फ़ुस्साक़ व फ़ुज्जार, उस वक़्त आम औरतें पाक दामन हया वाली शर्मीली और अब आम औरतें बेगैरत आज़ाद और बेशर्म जैसा उस वक़्त औरतों से पर्दा कराया गया तो क्या यह वक़्त उस वक़्त से अच्छा है इस वक़्त तो इतना फ़ित्ना है अल्लाह की पनाह और भी ज़्यादा पर्दा करना ज़रूरी बल्के वाजिब है

📔 औरतों के जदीद और अहम मसाइल सफ़ह 76--77)

कत्बा अल अब्द खाकसार नाचीज़ मोहम्मद शफीक़ रजा़ रज़वी ख़तीब व इमाम सुन्नी मस्जिद हज़रत मन्सूर शाह रहमतुल्लाह अलैहि बस स्टैंड किशनपुर जि़ला फतेहपुर उत्तर प्रदेश

Post a Comment

और नया पुराने