औरतों को गैर मर्दों के सामने नज़म पढ़ना कैसा है


सवाल औरतों को शहादत नामा पढ़ना और गैर मर्दों के सामने नज़म पढ़ना कैसा है


अल जवाब शहादत नामा जो बातिल और ग़लत रिवायात पर मुस्तमिल हो उसका पढ़ना नाजाइज़ व हराम है, हां जो रिवायाते सहीहा हों उसके पढ़ने में हर्ज नहीं

हुज़ूर मुस्तफ़ा रज़ा ख़ान अलमारूफ़ ब मुफ्ती-ए-आज़म हिंद अलैहिर्रहमह फ़रमाते हैं

शहादत नामा जिसमें तमाम तर सही-सही रिवायात हों उसका पढ़ना अच्छा है जैसे आईना ए क़यामत और जो ग़लत बातिल रिवायात इफ़तराआत पर मुस्तमिल हो उसका पढ़ना सख्त बुरा और नाजाइज़ है

📘फ़तावा मुस्तफ़वियह सफ़ह 526)

और फ़तावा रज़वियह शरीफ़ में है

लड़कियों का गैर मर्दों के सामने ख़ुशउलहाली से नज़म पढ़ना हराम है और अजनबी नौजवान लड़कों के सामने बेपर्दा रहना भी हराम और लड़कियों को लिखाना सिखाना मकरूह, यूं ही आशिक़ाना नज़्में पढ़ाना ममनू

📗 फ़तावा रज़वियह जिल्द 9, सफ़ह 109 निस्फ़ आख़िर)

लेकिन अब औरतों को शहादत नामा वगैरह पढ़ने की इजाज़त नहीं और दूसरी बात यह है कि तशब्बोह शिआ की वजह से मम्नू व नाजाइज़ है

📔 औरतों के जदीद और अहम मसाइल सफ़ह.122)

कत्बा अल अब्द खाकसार नाचीज़ मोहम्मद शफीक़ रजा़ रज़वी ख़तीब व इमाम सुन्नी मस्जिद हज़रत मन्सूर शाह रहमतुल्लाह अलैहि बस स्टैंड किशनपुर जि़ला फतेहपुर उत्तर प्रदेश

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