तराबीह में इमाम को लुक़्मा देना कैसा है?

इमाम तरावीह में अटके और आगे न पढ़ पाए या ऐसा हो कि रवानी में पढ़ते हुए कोई आयत या आयत का हिस्सा छोड़ कर बिगैर रुके या अटके आगे निकल जाए और ना जाइज़ मिक्दार तक खामोश रहना भी न पाया जाए, न ही मा'ना फ़ासिद होते हों तब भी मुक्तदी को बताना चाहिये क्यूं कि इमाम के न ठहरने या फ़सादे मा'ना न होने के सबब अगरचे नमाज़ पर असर नहीं पड़ेगा लेकिन चूंकि तरावीह में पूरे कुरआने अज़ीम का ख़त्म करना मक्सूद होता है और कुछ हिस्सा रह जाने से येह मक्सूद पूरा नहीं होगा। चुनान्चे इमामे अहले सुन्नत फ़तावा र-ज़विय्या शरीफ़ में फ़रमाते हैं 

तरावीह में ख़त्मे कुरआने अज़ीम हो तो मुक्तदी को बताना चाहिये जब कि इमाम से न निकले या वोह आगे रवां हो जाए अगर्चे उस ग-लती से नमाज़ में कुछ खराबी न हो कि मक्सूद खत्मे किताबे अज़ीज़ है और वोह किसी ग-लती के साथ पूरा न होगा

(फ़तावा रिज़विय्या शरीफ़ स. 282 जि. 7 रज़ा फ़ाउन्डेशन लाहोर)📚 नमाज़ में लुक़्मा देने के मसाइल स. 18

कत्बा अल अब्द खाकसार नाचीज़ मोहम्मद शफीक़ रजा़ रज़वी ख़तीब व इमाम सुन्नी मस्जिद हज़रत मन्सूर शाह रहमतुल्लाह अलैहि बस स्टैंड किशनपुर जि़ला फतेहपुर उत्तर प्रदेश

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