बाज़ ना वाक़िफ़ों की आदत होती है कि जब ग-लती करते हैं याद नहीं आता तो इज्तिरारन उन से बा'ज़ कलिमात बे माना सादिर हो(यानी घबराहट में उनकी ज़ुबान से निकल) जाते हैं कोई “ऊं ऊं" कहता है कोई कुछ और, इस से नमाज़ बातिल हो जाती है तो जिस की येह आदत मालूम है जब रुकने पर आए मुक्तदियों पर वाजिब है कि फ़ौरन बता दें क़ब्ल इस के कि वोह अपनी आदत के हुरूफ़ निकाल कर नमाज़ तबाह करे।
(फ़तावा र-ज़विय्या शरीफ़, स. 282, जि. 7, रजा फाउन्डेशन लाहोर)
📚 नमाज़ में लुक़्मा देने के मसाइल, स. 18
कत्बा अल अब्द खाकसार नाचीज़ मोहम्मद शफीक़ रजा़ रज़वी ख़तीब व इमाम सुन्नी मस्जिद हज़रत मन्सूर शाह रहमतुल्लाह अलैहि बस स्टैंड किशनपुर जि़ला फतेहपुर उत्तर प्रदेश