क़सम खाना कैसा और उनकी शरई हैसियत?

सवाल एक सवाल है कि बहुत सारे लोग माँ क़सम, तुम्हारी क़सम, सर की क़सम, बाप की क़सम, या इसी तरह़ हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की क़सम खाते हैं तो ऐसा क़सम खाना कैसा है और अगर कोई हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की क़सम खा ले और फिर टूट जाए तो कफ्फारा लाज़िम आयेगा या नहीं इसका जवाब इनायत करें

जवाब इस तरह़ क़सम उठाना ( खाना) मकरुह है और ये शरअन क़सम भी नहीं लिहाज़ा इसे तोड़ने से कफ्फारा लाज़िम न होगा- बहारे शरीयत में है के गैरे खुदा यानि (खुदा के अलावा) की क़सम मकरुह है और ये शरअन क़सम भी नहीं यानि इसको तोड़ने से कफ्फारा लाज़िम नहीं गैरे खुदा की क़सम, क़सम नहीं- मसलन तुम्हारी क़सम, अपनी क़सम,

तुम्हारी जान की क़सम,

अपनी जान की क़सम,

तुम्हारे सर की क़सम,

अपने सर की क़सम,

आंखों की क़सम,

जवानी की क़सम,

माँ बाप की क़सम,

औलाद की क़सम,

मज़हब की क़सम,

दीन की क़सम,

इल्म की क़सम,

काबा की क़सम,

अरशे इलाही की क़सम,

रसूलल्लाह की क़सम

वगैरह न खाना चाहिए और इसके टूटने से कफ्फारा भी लाज़िम नहीं आता

📚बहारे शरीअत जिल्द 02 हिस्सा 09 सफह 302, क़सम का ब्यान

कत्बा अल अब्द खाकसार नाचीज़ मोहम्मद शफीक़ रजा़ रज़वी ख़तीब व इमाम सुन्नी मस्जिद हज़रत मन्सूर शाह रहमतुल्लाह अलैहि बस स्टैंड किशनपुर जि़ला फतेहपुर उत्तर प्रदेश

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