शोहर के हुकूक़ क्या है बीवी पर

 


✿➺ सवाल


बीवी के हकूक़ तो हर लड़की को अममन मालुम है. इसीलिए हिन्दस्तानी लड़की परेशानियो के हद से गुजर जाने के बावजूद ना मैके की दहलीज़ फलांगती है ना सुसराल की इसलिए हज़रत बराए करम रहनुमाई फरमाये के 

1- शोहर के हुकूक़ क्या है, 

2- जो बीवी घर की सारी ज़िम्मेदारी अदा करती हो जो शोहर की है इस के लिए क्या हुक्म है?



❀➺ जवाब


इसकी तफ़सील आप किसी किताब (जन्नति जे़वर, वग़ैरह) से पढ़ ले तो ज़्यादा बेहतर है एक जवाब मे सब बताना मुमकिन नही. कुछ मुख्तसर अर्ज़ है


हदीस मे फरमाया 


तुम मे अच्छे वह लोग हैं, जो औरतो से अच्छी तरह पेश आएँ" 


बुखारी मे है


कोई शख़्स अपनी औरत को ना मारे, जैसे गुलाम को मरता है


इहिया उल उलूम मे है


हुज़ूरﷺ की आखरी वसीयत 3 बातो पर थी, और बार बार उन्हे ही दोहरा रहै थे, यहा तक की जुबान मे तुतलाहट और कलाम मे आहिस्तगी आ गई, आपने फरमाया - नमाज़ को लाज़िम पकड़ो, नमाज़ को लाज़िम पकड़ो, और जिनके तुम मालिक हो उन पर उनकी ताक़त से ज़्यादा बोझ ना डालो, औरतो के मुआमले मे अल्लाह से डरते रहो, की ये तुम्हारे हाथ मे कैदी हैं, तुम ने उन्हे अल्लाह की अमानत के साथ लिया है, और अल्लाह के कलिमे के साथ उनकी शरमगाह को हलाल किया है" 'औरत के साथ हुन ए अखलाक से पेश आओ, और वो ये है की उससे तकलीफ़ को दूर करो, हालते गुस्से वा गज़ब मे सब्र इख़्तियार करना हुस्ने अख़लाक़ है, उनके साथ कुछ नर्मी से खेल कूद और खुश तबइ भी करे, की ये औरत के दिल को खुश करने वाला है, फारूक्के आज़म का कौल है की - आदमी को अपने घर मे बच्चे की तरह रहना चाहिए


हज़रत ए लुकमान का कौल है

अकल्मंद को चाहिए की घर मे बच्चे की तरह रहे बाहर मर्द की तरह (मुराद अपनी बीवी से प्यार मोहब्बत करने वाला, मज़ाक करने वाला उसका दिल खुश करने वाला, नाकी हमेशा गुस्से वाला, मारने वाला) "लुकमा (खाना) मे एहितदाल - मर्द को चाहिए की ना तो बिला वजह तंगी कर ना फ़िज़ल खर्ची करे।

इल्म- औरत को उसकी ज़रूरत के इल्म से आगाह करना भी उसके हाकिम (आदमी) के जिम्मे है. इसी तरह हर फ़र्ज़ बाजिब का उसके वक़्त पर हक्म देना और हर हराम से बचते रहने की ताक़ीद करना ठीक वैसे ही नाफरमान औरत को अदब सिखाए, मगर इस तरह के ये टेडी पसली टूटने ना पाए और ये हदीस भी ज़हन मे रहै औरतो के मुआमले मे अल्लाह से डरते रहो तीन दिन से ज़्यादा औरत से ताल्लुक़ ना तोड़े, और मारने की ज़रूरत आए तो हल्की मार से मारे, वरना नाराज़गी ज़ाहिर करे, खाना, बिस्तर अलग करे, मगर जुल्म या गुलाम की तरह ना मारे, और जो औरत अपने शोहर का हक़ अदा करे तो उसके मुताल्लिक़ फरमाया - तबरानी मे है "जो औरत खुदा की फ़र्माबरदारी करे, और शोहर का हक़ अदा करे, और उसे नेक काम की याद दिलाए, और अपनी इज़्ज़त और अपने माल मे खयानत ना करे, तो ऐसी औरत के और शहीदो के दरमियान जन्नत मे एक दर्जे का फ़र्क होगा


अबु नईम ने हज़रत अनस से रिवायत किया


औरत जब पाँचो नमाज़े पढ़े, और माहै रमज़ान के रोज़ रखे, और अपनी इज़्ज़त की हिफ़ाज़त करे, और शोहर की फ़र्मा बरदारी करे, तो जन्नत के जिस दरवाज़े से चाहै दाखिल हो तिरमिज़ी उम्मे सलमा से रावी" जो औरत इस हाल मे मरी की उसका शोहर उससे राज़ी था वह जन्नत मे दाखिल होगी।




📚ह़वाला पर्दादारी, सफा नं.61

     

✒️मौलाना अब्दुल लतीफ न‌ईमी रज़वी क़ादरी बड़ा रहुवा बायसी पूर्णियाँ बिहार

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