तलाक़ देने का हक़ मर्द को दिया गया औरत को क्यू नहीं

 


✿➺ सवाल


तलाक़ देने का हक मर्द को दिया गया है, हालांकी, निकाह मर्द औरत दोनों की रिज़ामंदी से होता है, तो फिर औरत को ये इख़्तियार क्यूँ नही की वह भी जब चाहै इसको ख़त्म कर सके।


❀➺ जवाब


औरत मे मक्कारी मर्द से ज़्यादा होती है इसमे कोई शक नही, और फिर, हदीस शरीफ मे है, की औरत शैतान का हथियार है, अक़ल से नाक़िस (अधूरी) है, लिहाज़ा अल्लाह के फैसले हिकमत वाले हैं, अगर औरत को मुकम्मल इख़्तियार दिया जाता तो क्यूंकी ये शैतान का हथियार है, तो ज़ाहिर है शैतान इन्हे जल्द बहका देता और घर बर्बाद करवा देता फिर एक शहवते नफ़स औरत मे मर्द से 100 % ज़्यादा होती है, अगर इन्हे इख़्तियारे तलाक़ दे दिया जाए तो हर हफ्ते नया मालदार शोहर तलाश करके निकाह कर लें, क्यूंकी इसमे शक नही के जिस दौर मे हम है, उसमे औरतो की अक्सरीयत फेशन पसंद है, और ज़ेवर, कपड़ा, मेकप की बुन्याद पैसा है, फिर औरत मे दिखावे का एक कीड़ा और होता है, किसी का नया महंगा सूट देख कर, उससे अच्छा लाने की तलब, और क्यूंकी क़ुरआन ने मर्द को हाकिम बनाया है, तो हाकिम उसी सूरत मे करार पाएगा की हक़ उसको दिया जाए, वरना मर्द औरत का गुलाम हो जाएगा, फिर औरत तलाक की धमकी दे कर हर काम शोहर से करवा लेगी, आज ही देख लो, तलाक़ का हक़ नही है, फिर भी, अगर नया सूट, चप्पल, ज़ेवर चाहिए होता है तो कैसे कैसे चाल चल कर जाल बुना जाता है, फिर पावर होगी तो अल्लाह की पनाह, जैसे गंजे को नाखून, फिर हाल ये होगा की इस महीने 4 सूट बन जाने चाहिए वरना तुम्हे तलाक दे दूंगी वगैरह-वगैरह! ये तो था दलायल ए अकलिया, और नफ़स ए मसअला, ये है की शरीअत मे औरत को भी तलाक़ देने का हक़ है लिहाज़ा ये कहना दुरुस्त नही की औरत को क्यूँ हक़ नही,? फ़र्क ये है की, औरत अहकाम से वाकिफ़ नही, अगर कोई मर्द औरत को तलाक़ का इख़्तियार दे दे, तो औरत खुद को तलाक़ दे सकती है, ये भी शरीअत मे मौजूद है, मगर मर्द को चाहिए की इख़्तियार ना दे, वरना जो सूरत उपर ब्यान हुई पेश आने का ख़ौफ़ हैं।


📗बहारे शरीअत, जिल्द:2, सफा:134 पर है


औरत से कहा तुझे इख्तियार है या तेरा मामला तेरे हाथ, और इससे मक़सूद तलाक़ का इख़्तियार देना है, तो औरत उस मजलिस मे अपने को तलाक़ दे सकती है, अगर शोहर ने वक़्त मुकर्रर कर दिया था मसलन, आज उसे इख़्तियार है (की खुद को तलाक़ दे दे) और वक़्त गुज़रने के बाद औरत को इल्म हुआ (की मेरा वक़्त आज का था गुज़र गया) तो अब कुछ नही कर सकती

नोट याद रहे इस मसअले मे वक़्त, मजिल्स, इख़्तियार बातिल, वग़ैरह होने की बहुत तफ़सील है, लिहाज़ा इस जवाब को इस मौजू पर मुकम्मल तसवउर ना किया जाए, तहरीर मे बताने का मक़सद फक़त इतना है की तलाक़ का हक़ औरत को भी हो सकता है, अगर मर्द इख्तियार दे दे और मेरे इस कलाम मे कुछ तल्ख बाते शामिल है, लिहाज़ा ख़वातीन बुरा ना माने, ये सब के लिए नही मगर जो ऐसी हैं।


📚ह़वाला पर्दादारी, सफा नं.80

     

✒️मौलाना अब्दुल लतीफ न‌ईमी रज़वी क़ादरी बड़ा रहुवा बायसी पूर्णियाँ बिहार

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