(मसला) ज़वाल के वक़्त क़ज़ा नमाज़ पढ़ना और तिलावत का सज्दा करना कैसा है?
(जवाब)
दुहा-ए-कुबरा यानी निस्फ़ुन्नहार शरीई (जब सूरज ठीक सर के ऊपर हो जाता है) से लेकर सूरज के ढलने तक
इस वक़्त में क़ज़ा नमाज़ और सज्दा-ए-तिलावत अदा नहीं किए जा सकते
📘 फ़तावा-ए-हिन्दिया (जिल्द 1 सफ़ा 52) में है
तीन ऐसे वक़्त हैं जिनमें न तो फ़र्ज़ नमाज़ न जनाज़े की नमाज़ और न सज्दा-ए-तिलावत जायज़ है (1) सूरज निकलने से लेकर ऊँचा होने तक (2) सूरज के बिल्कुल सर पर होने (ज़वाल) से लेकर ढलने तक (3) और सूरज के लाल होने से लेकर पूरी तरह ग़ुरूब होने तक। हाँ उसी दिन की अस्र की नमाज़ ग़ुरूब के वक़्त अदा करना जायज़ है
📚 फ़तावा क़ाज़ी ख़ान में भी यही लिखा है यानी इन तीन वक़्तों में क़ज़ा नमाज़ और सज्दा-ए-तिलावत दोनों नहीं पढ़े जा सकते
वल्लाहो आलमु बिस्सवाब
✍️ कत्बा नदीम इब्न अलीम अल-मस्बूर अल अयनी
