बिना सूरह फ़ातिहा के नमाज़ पढ़ा दी तो क्या हुक्म है?



बिना सूरह फ़ातिहा के नमाज़ पढ़ा दी तो क्या हुक्म है? 

(सवाल) अगर इमाम ने पहली रकअत में नीयत बाँधी और भूलवश सूरह फ़ातिहा पढ़ना छोड़ दिया, फिर सीधे कोई दूसरी सूरह मिला कर रुकूअ कर लिया तो अब इमाम के लिए क्या हुक्म है? क्या वह दोबारा क़ियाम में लौटकर सूरह फ़ातिहा पढ़े या वैसे ही नमाज़ मुकम्मल करके आखिर में सज्दा-ए-सहव करे?

(जवाब)

ऐसी सूरत में इमाम को चाहिए कि वह वापस क़ियाम की तरफ लौटे सूरह फ़ातिहा पढ़े, फिर दूसरी सूरह मिलाए और फिर रुकूअ करे इस तरह उसकी नमाज़ मुकम्मल हो जाएगी लेकिन अगर रुकूअ में याद आने के बावजूद वह वापस न लौटा तो उसने जानबूझकर वाजिब छोड़ दिया इसलिए उसकी नमाज़ वाजिब-उल-इआदा होगी यानी उसे नमाज़ दोबारा पढ़नी होगी और सज्दा-ए-सहव (भूल का सज्दा) काफ़ी नहीं होगा

और अगर वह क़ियाम में लौटा मगर क़िराअत मुकम्मल करने के बाद दोबारा रुकूअ नहीं किया तो उसकी नमाज़ फ़ासिद (टूट जाएगी) क्योंकि क़िराअत के बाद रुकूअ करना फ़र्ज़ है और यह तरतीब (क्रम) का हिस्सा है


📚 ऐसा ही रद्द-उल-मुहतार (जिल्द 1 सफ़ा 536) में लिखा है

वल्लाहो आलमु बिस्सवाब 

✍️ कत्बा नदीम इब्न अलीम अल-मस्बूर अल अयनी

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