दुकान मे देवी देवताओं की फोटो लगाना कैसा ?



सवाल

क्या फ़रमाते हैं उलमा-ए-कराम व मुफ़्तियान-ए-शरअ-ए-मतीन इस मसअले के बारे में कि ज़ैद ने लाइन होटल खोल रखा है और उसमें अहल-ए-हनूद के देवी-देवताओं की तस्वीरें भी लगा रखी हैं, इस मक़सद से कि हिन्दू ग्राहक उसे हिन्दुओं का होटल समझकर बड़ी तादाद में आएँ, तो ज़ैद को ऐसा करना अज़-रू-ए-शरअ कैसा है? और ज़ैद पर क्या हुक्म-ए-शरअ लगेगा? मुदल्लल व मुफ़स्सल क़ुरआन व अहादीस की रोशनी में जवाब इनायत फ़रमाएँ, आपकी नवाज़िश होगी।

अल-मुसतफ़्ती: मुहम्मद इरशाद आलम, मशरिक़ी चम्पारण, बिहार

जवाब

अव्वलन: ज़ैद की यह सोच कि लोग उसे हिन्दू समझकर आएँगे, यह एक क़िस्म का धोखा है, जिसकी इस्लाम क़तअन इजाज़त नहीं देता, चाहे किसी भी इंसान के साथ हो। क्योंकि इसकी रोज़-ए-महशर बहुत सख़्त पकड़ होगी और अल्लाह चाहे तो दुनिया ही में ज़लील व रसवा कर दे।

हदीस शरीफ़ में है:

اِنَّ رَسُوْلَ اللہِ صَلَّی اللہُ تَعَالیٰ عَلَیْہِ وَسَلَّمَ مَرَّ عَلیٰ صُبْرَۃِ طَعَامٍ فَاَدْخَلَ یَدَہٗ فِیْھَا، فَنَالَتْ اَصَابِعُہٗ بَلَلاً فَقَالَ: مَا ہٰذَا یَا صَاحِبَ الطَّعَامِ؟ قَالَ اَصَابَتْہُ السَّمَائُ یَارَسُوْلَ اللہِ۔ قَالَ: اَفَلاَ جَعَلْتَہٗ فَوْقَ الطَّعَامِ کَیْ یَراہُ النَّاسُ، مَنْ غَشَّ فَلَیْسَ مِنِّی

एक बार नबी करीम ﷺ का एक ग़ल्ले के ढेर के पास से गुज़र हुआ। आपने अपना हाथ ग़ल्ले में डाला तो हाथ में नमी पाई; यानी ऊपर ग़ल्ला सूखा था और नीचे गीला था। आपने फ़रमाया: यह क्या है? ग़ल्ला बेचने वाले ने कहा: या रसूलल्लाह ﷺ, बारिश की वजह से गीला हो गया। आपने फ़रमाया: इसे ऊपर क्यों न किया ताकि लोग देख लेते? जिसने धोखा दिया वह हम में से नहीं है।

{मुस्लिम शरीफ़}

सानियन: ज़ैद का अपने होटल में ग़ैरों के बातिल पेशवाओं की तस्वीरें लगाना सख़्त से सख़्त नाजायज़ व हराम है, बल्कि इससे ज़ैद के अक़ीदे की कमज़ोरी मालूम होती है। कभी-कभी इस तरह की सोच-विचार मुसलमान को कुफ़्र के दलदल में जा पटकती है

हदीस में है कि जिन घरों में कुत्ता और दूसरे जानदारों की तस्वीरें होती हैं, उन घरों में रहमत के फ़रिश्ते दाख़िल नहीं होते।

عن ابی طلحة قال قال النبی ﷺ لا تدخل الملائكة بيتاً فيه كلب ولا تصاوير

{बुख़ारी शरीफ़}

अब ग़ौर करें, जब आम तस्वीरों के बारे में शरअ का इतना सख़्त हुक्म है, तो ग़ैर-मुस्लिमों के बातिल पेशवाओं की तस्वीरें लगाने में कितना सख़्त हुक्म होगा। इसलिए ज़ैद को चाहिए कि वह सारी तस्वीरें हटाए, सच्चे दिल से तौबा करे, नमाज़-रोज़े की पाबंदी करे और पूरा भरोसा अल्लाह की ज़ात पर करे। क्योंकि सच्चे मुसलमान का अक़ीदा है कि रहमत व बरकत, ज़िल्लत व इज़्ज़त, सेहत व हुकूमत, नफ़ा व नुक़सान—सब का सब अल्लाह की तरफ़ से है। अल्लाह जिसको नवाज़ता है उससे कोई छीन नहीं सकता और जिससे छीनता है उसे कोई दे नहीं सकता

क़ुरआन शरीफ़ में है:

وَتَرْزُقُ مَن تَشَاءُ بِغَيْرِ حِسَابٍ

यानी रब्ब-ए-कायनात जिसे चाहता है बे-हिसाब अता करता है (सूरह आल-ए-इमरान, आयत नंबर 27)

वल्लाहु व रसूलुहू अअलम बिस्सवाब

कत्बा: उबैदुल्लाह हनफ़ी बरेलवी मक़ाम: धोनरा टांडा, ज़िला बरेली शरीफ़ (यू.पी.) 29 मुहर्रमुल हराम 1441 हिजरी, बरोज़ इतवार

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