ग़ुस्ल से क्या होता है ?

 


मख़सूस दिनों में ग़ुस्ल की ताकीद का राज़

रसूल ए पाक ने उम्मत को ग़ुस्ल की अज़ हद ताकीद फरमाई है ख़ुसूसन जुमअतुल मुबारक के दिन तो ग़ुस्ल पर इस क़दर ज़ोर दिया है चुनान्चे इरशाद होता है जुम्मे के रोज़ ग़ुस्ल ज़रूर किया करो अगरचे तुम्हें एक दीनार फी ( एक ) प्याला पानी के बदले ख़र्च करना पड़े 

📗 रियाज़ुस सालिहीन ) 

इसी तरह ईदैन के मोक़े पर भी ग़ुस्ल को मुसतहब क़रार दिया है 📚 बहारे शरीअत ) 

सवाल यह है कि ग़ुस्ल से क्या होता है ?

इसका जवाब यह है कि ग़ुस्ल के वक़्त बदन पर ठन्डा पानी पड़ते ही निशात ओ सुरूर 

(बहुत ज़्यादा ख़ुशी )की लैहर पूरे जिस्म में दोड़ जाती है और उसी लमहे अफसुर्दगी

(अफसोस का मुक़ाम )और दर मान्दगी शगुफत्गी ( चेहरे का खिलना ) में बदल जाती है इंसान को नई ताज़गी और फरहत ( ख़ुशी ) का अहसास होने लगता है आसाब व अज़लात (बदन के हिस्से और पठ्ठे ) की सुस्ती व कमज़ोरी जाती रहती है आदमी अपनी तबीयत में एक ग़ैर मामूली बिशाशत और ख़ुशगवारी महसूस करने लगता है इबादात और काम काज में उसका ख़ूब दिल लगता है 

जुमअतुल मुबारक और ईदैन चूंके मुसलमानों के इजतिमाआत के दिन होते हैं इस लिए इन दिनों में नहाने को बहुत अफज़ल क़रार दिया है ताकि तमाम मुसलमान नहा धो कर साफ सुथरे लिबास पहन करके इजतिमा में जाएँ और पूरा मजमअ निफसतो नफाज़त

( सफाई और पाकी ) का दिलकश मनज़र पेश करें दर असल अय्यामे जुमअतुल मुबारक और ईदैन बारगाहे ख़ुदा बन्दी में हाज़िर होने के ख़ास दिन होते हैं इन दिनों में की गई इबादतो रियाज़त भी अपना ख़ास मुक़ाम रखती है आला दर्जे पर फाइज़ वो इबादत होती है जिसमें ज़्यादा से ज़्यादा ख़ुशू व ख़ुज़ू पाया जाए और ऐसी ही इबादत क़ुर्बे इलाहीया का ज़रिया हुआ करती है

यह भी हक़ीक़त है ख़ुशू व ख़ुज़ू के मयस्सर आने में इबादत गाहों के माहौल का ख़ास अमल दख़ल है चुनान्चे इबादत गाहों के माहौल को पुर कैफ और दिल कश बनाने के लिए ज़रूर ठहरा कि मजमे का हर रुक्न ग़ुस्ल करके साफ सुथरा लिबास पैहन करके आँखों में सुरमा लगा कर बदन को ख़ुशबुओं में रचा कर इबादत गाह में हाज़िर होता कि क़ुर्बे इलाहीया के हुसूल के अलावा क़ुरबते

बा हमी (एक दुसरे की मोहब्बत ) को भी फुरूग़ ( मदद ) मिले इसके अलावा मुसलमानों का यह तय्यब मुतह्हिर तरज़े अमल अग़यार ( ग़ैर मज़हब लोगों ) को भी मज़हबे इसलाम की तरफ राग़िब करने के सिलसिले में मददगार व मुआविन साबित हो सकता है

📘 इबादत और जदीद साइंस सफ़ह 28

कत्बा अल अब्द खाकसार नाचीज़ मोहम्मद शफीक़ रजा़ रज़वी ख़तीब व इमाम सुन्नी मस्जिद हज़रत मन्सूर शाह रहमतुल्लाह अलैहि बस स्टैंड किशनपुर जि़ला फतेहपुर उत्तर प्रदेश

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