तहारत के अहम मसाइल

 


सवाल हैज़ व निफ़ास का क्या हुक्म है

जवाब:- हैज व निफास की हालत में रोज़ा रखना और नमाज़ पढ़ना हराम है उन दिनों में नमाजें मुआफ़ हैं उनकी कज़ा भी नहीं मगर रोज़ों की कज़ा और दिनों में रखना फर्ज है और हैज़ व निफ़ास वाली औरत को कुरआन मजीद पढ़ना हराम है ख़्वाह देख कर पढ़े या जुबानी और उसका छूना अगरचे उसकी जिल्द या हाशियह को हाथ या उंगली की नोक या बदन का कोई हिस्सा लगे ये सब हराम हैं। हां जुज़दान में कुरआन मजीद हो तो उस जुज़दान के छूने में हर्ज़ नहीं 📚बहारे शरीअत

सवाल: जिसे इहतिलाम (नाइट फ़ेल) हुआ और ऐसे मर्द व औरत के जिन पर गुस्ल फ़र्ज़ है उनके लिए क्या हुक्म है?

जवाब: ऐसे लोगों को गुस्ल किए बगैर नमाज़ पढ़ना कुरआन मजीद देख कर या जुबानी पढ़ना उसका छूना और मस्जिद में जाना सब हराम है

📚जौहरह नीरह 📚बहारे शरीअत

सवाल- क्या जिस पर गुस्ल फ़र्ज़ हो वो मस्जिद में नहीं जा सकता

जवाब:- जिस पर गुस्ल फ़र्ज़ हो उसे मस्जिद के उस हिस्सा में जाना हराम है के जो दाखिले मस्जिद है यानी नमाज़ के लिए बनाया गया है और वो हिस्सा के जो फ़ना ए मस्जिद है यानी इसतिंजा खाना गुस्ल खाना और वुज़ू गाह वगैरा तो उस जगह जाने में कोई हर्ज नहीं बशर्ते के उनमें जाने का रास्ता दाखिले मस्जिद से होकर न गुज़रता हो

सवाल: ऐसे मर्द व औरत के जिन पर गुस्ल फ़र्ज़ है वो कुरआन की तालीम दे सकते हैं या नहीं

जवाब: ऐसे लोग एक एक कलिमह सांस तोड़-तोड़ कर पढ़ा सकते हैं और हिज्जे कराने में कोई हर्ज़ नहीं

📚बहारे शरीअत वग़ैरह

सवाल:- बे वुज़ू कुरआन शरीफ़ छूना और पढ़ना जाइज़ है या नहीं

जवाब:- बे वुज़ू क़ुरआन शरीफ़ छूना हराम है, बे छुए जुबानी या देखकर पड़े तो कोई हर्ज़ नहीं

सवाल:- बे वुज़ू पारा ए अम्म या किसी दूसरे पारा का छूना कैसा है

जवाब:- बे वुज़ू पारा ए अम्म या किसी दूसरे पारह का छूना भी हराम है

📗अनवारे शरीअत उर्दू, पेज़ 35/36)

कत्बा अल अब्द खाकसार नाचीज़ मोहम्मद शफीक़ रजा़ रज़वी ख़तीब व इमाम सुन्नी मस्जिद हज़रत मन्सूर शाह रहमतुल्लाह अलैहि बस स्टैंड किशनपुर जि़ला फतेहपुर उत्तर प्रदेश

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