पीर साहब का औरतों के बीच में बैठकर हल्क़ा कराना कैसा है


सवाल पीर साहब का औरतों के बीच में बैठकर हल्क़ा कराना कैसा है

अल जवाब औरतों के दरमियान बैठकर पीर साहब का हल्का कराना शरअ् के तो ख़िलाफ़ है ही, साथ ही हया के भी ख़िलाफ़ हैं, वरना वह ख़ुद औरतों को सामने आने से मना करते, एक बा हया बा शर्म इंसान कभी ऐसा कर ही नहीं सकता, लेकिन जब इंसान के अंदर हया नहीं होती तो वह कुछ भी कर सकता है

जैसा के हदीसे पाक में हज़रत अबू मसऊद रज़िअल्लाहू तआला अन्ह की यह रिवायत मौजूद है कि

नबी ए पाक सल्लल्लाहू तआला अलैही वसल्लम ने फ़रमाया

जब तुझे हया नहीं तो जो चाहे कर

📚 बुख़ारी किताबुल आदाब....... जिल्द 2, सफ़ह 904)


और आलाहज़रत अलैहिर्रहमह फ़रमाते हैं

पीर से पर्दा वाजिब है जबके महरम ना हो यह सूरत महज़ ख़िलाफ़े शरअ् व ख़िलाफ़े हया है, ऐसे पीर से बैअत ना चाहिए, (यानी जो पीर पाबंदे शरअ् न हो उससे मुरीद होना जाइज़ नहीं)

📚 अर्रज़वियह जिल्द 9 सफ़ह 304)

📔 औरतों के जदीद और अहम मसाइल सफ़ह 96--97)

कत्बा अल अब्द खाकसार नाचीज़ मोहम्मद शफीक़ रजा़ रज़वी ख़तीब व इमाम सुन्नी मस्जिद हज़रत मन्सूर शाह रहमतुल्लाह अलैहि बस स्टैंड किशनपुर जि़ला फतेहपुर उत्तर प्रदेश

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