अजनबी औरत को जान-बूझकर देखना


सवाल क्या मर्द का किसी अजनबी औरत को और औरत का अजनबी मर्द को जान-बूझकर देखना जब्के पहली नज़र हो मुआफ़ है

अल जवाब मर्द किसी अजनबी औरत को या औरत किसी अजनबी मर्द को बिलक़स्द जानबूझकर देखे तो मुआफ़ नहीं बल्कि गुनाह है, हां अगर बिलाक़स्द बे इरादा पहली नज़र पड़ जाए तो मुआफ़ है, कोई गुनाह नहीं, मगर यह नहीं के बराबर देखता रहे, बल्कि फ़ौरन नज़र हटा ले

सही मुस्लिम में हज़रत जरीर बिन अब्दुल्लाह रज़िअल्लाहू तआला अन्ह से रिवायत है कहते हैं कि मैंने अचानक नज़र पड़ जाने के मुताल्लिक़ दरयाफ़्त किया

हुज़ूर सल्लल्लाहू तआला अलैही वसल्लम ने हुक्म दिया के अपनी निगाह फेर लो

📚 मुस्लिम किताबुल आदाब, बाबुन्नज़रुल्फ़ाजिरह सफ़ह 1190 📗 मिश्कात सफ़ह 268)

और इमाम अहमद व अबू दाऊद व तिरमिज़ी व दारमी ने हज़रत बुरीदा रज़िअल्लाहू तआला अन्ह से रिवायत की के रसूलल्लाह सल्लल्लाहू तआला अलैही वसल्लम ने हज़रत अली रज़िअल्लाहू तआला अन्ह से फ़रमाया

ए अली एक नज़र के बाद दूसरी नज़र ना करो (यानी अगर अचानक बिला क़स्द किसी औरत पर नज़र पड़ जाए तो फ़ौरन नज़र हटा ले और दोबारा नज़र ना करे) कि पहली नज़र जाइज़ है और दूसरी नज़र जाइज़ नहीं

📚 मिश्कात बाबुन्नज़र सफ़ह 269)

और हदीसे पाक में है हजरत इमाम अहमद ने अबू अमामा रज़िअल्लाहू तआला अन्ह से रिवायत की के रसूलल्लाह सल्लल्लाहू तआला अलैही वसल्लम ने फ़रमाया के

जो मुसलमान किसी औरत की खूबियों की तरफ़ पहली दफ़ा (बार) नज़र करे, यानी बिलाक़स्द फिर अपनी आंख मीच ले, यानी हटा ले या नज़र झुका ले, अल्लाह तआला उसके लिए ऐसी इबादत पैदा कर देगा जिसका मज़ा उसको मिलेगा

📚 अल मुस्तनदुल इमाम अहमद बिन हंबल, जिल्द 9, सफ़ह 18--19)

इन अहादीस से मालूम हुआ कि जानबूझकर ग़ैर मर्द व औरत का एक दूसरे की तरफ़ नज़र करना हराम व गुनाह है, अगरचे पहली नज़र हो, हां अगर बगैर क़स्द व इरादा के इत्तिफ़ाक़िया अचानक नज़र पड़ जाए तो, पहली नज़र माफ़ है, फिर निगाह ना हटाया और मुसलसल (लगातार) देखता रहा तो गुनाहगार होगा कि अचानक निगाह पड़ते ही फ़ौरन हटा लेने का हुक्म है

📔 औरतों के जदीद और अहम मसाइल सफ़ह 81--82--83)

कत्बा अल अब्द खाकसार नाचीज़ मोहम्मद शफीक़ रजा़ रज़वी ख़तीब व इमाम सुन्नी मस्जिद हज़रत मन्सूर शाह रहमतुल्लाह अलैहि बस स्टैंड किशनपुर जि़ला फतेहपुर उत्तर प्रदेश

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