नोटों का हार पहनना कैसा


सवाल दूल्हे को नोटों का माला पहनाना और दूल्हे पर नोटों सिक्कों और फूलों का फेंकना और उसके चेहरे पर कागज़ का फूल बांधना उसके हाथ पांव में मेहंदियां लगाना दूल्हे को आंगन में ले जाना कि जिसमें ग़ैर मेहरम औरतें भी होती हैं और औरतें बतौरे मज़ाक़ दूल्हा को रुपयों के साथ मिर्च टमाटर और बैगन वगैरह का माला बनाकर पहनाती हैं और सालियां और उसकी सहेलियां और मोहल्ले की लड़कियां दूल्हा और बारातियों के ऊपर चावल और गेहूं वगैरह फेंकती हैं और नीम वगैरह दरख़्तों के छोटे-छोटे फूलों से मारती हैं तो क्या हुक्म है

अल जवाब दूल्हे को नोटों का माला पहनाना और उस पर नोटों और सिक्कों का फेंकना दुरुस्त नहीं, इसलिए कि यह ग़ुरूर और तकब्बुर की निशानी है और तकब्बुर शरीयत में सख्त हराम है और मुतकब्बिरीन को अल्लाह तआला पसंद नहीं फ़रमाता है, नीज़ इससे ग़रीब मुसलमानों की दिल शिकनी भी होती है, और सबसे बड़ी बात तो यह है कि यह बेजा तसर्रुफ़ है, और फ़िज़ूलखर्ची में दाखिल है वगैरह-वगैरह और फ़िज़ूलखर्ची के बारे में रब तआला फ़रमाता है

तर्जमा और फ़िज़ूल ना उड़ा बेशक (फ़िज़ूल) उड़ाने वाले शैतानों के भाई हैं और शैतान अपने रब का बड़ा नाशुकरा है

📚 कंज़ुल ईमान पारा 15 सूरह बनीइसराईल, रुकू 3, आयत 27)

और इस पर यह बहाना के अल्लाह ने हमें दिया है तो हम लुटाते हैं, ग़लत है अगर अल्लाह तआला ने दिया है तो इस तरह लुटाने का हुक्म भी नहीं दिया है, बल्कि ग़रीबों फ़क़ीरों और मिस्कीनों पर ख़र्च करने और सद़क़ा करने का हुक्म फ़रमाया है

📚 पारा 10, सूरह तौबा आयत 60)

और फूलों का फेंकना जाइज़ है, लेकिन अहवत व अनसब व बेहतर और अफज़ल यही है कि दूल्हे पर फूलों को ना फेंके, इसलिये कि फूल मोहतरम शय है ख़ासकर ग़ुलाब के वह आप सल्लल्लाहू तआला अलैही वसल्लम के पसीना ए अक़दस से पैदा हुआ और चंबेली हज़रत जिब्रील अलैहिस्सलाम के पसीना से पैदा हुई

और मर्द के चेहरे पर कागज़ का फूल और चमकीली पन्नियां बांधना दुरुस्त नहीं, क्योंकि यह ज़ीनत है और मर्द को ज़ीनत करना और ऐसा लिबास पहनना जो चमकदार हो हराम है, मर्दों को सिर्फ़ फूलों का सेहरा ही बांधना चाहिए

हुज़ूर सदरुश्शरिअह बदरुत्तरीक़ह अल्लामा अमजद अली आज़मी अलैहिर्रहमह फ़रमाते हैं

ख़ालिस फूलों का सेहरा जाइज़ बिला वजह मम्नूअ् नहीं कहा जा सकता

📚 बहारे शरिअत हिस्सा हफ़्तम सफ़ह 94)

और दूल्हा को हाथ पांव में मेहंदी लगाना नाजाइज़ व हराम है,

हदीसे पाक में मर्दो को मेहंदी लगाने की मुमानअ्त आई है

और रद्दुल मोहतार में है

يكره للا نسان ان يخضب يديه ور جليه و كذا الصبى الالحاجة بغا ية ولا باس به للنساء

📗 रद्दुल मोहतार जिल्द 9, सफ़ह 522)

और हुज़ूर आलाहज़रत अलैहिर्रहमह् फ़रमाते हैं

मर्द को हथेली या तलवे बल्कि सिर्फ़ नाखूनों ही में मेहंदी लगानी हराम है कि औरतों से तशब्बोह है

📚 फ़तावा रज़वियह (कदीम) जिल्द 09 निस्फ़ आखिर सफ़ह 149)

और दूल्हा को आंगन में ग़ैर महरम औरतों के सामने ले जाना ख़िलाफ़े शरअ् और हराम व मम्नूअ् और गुनाह है, इसलिए के दूल्हा जब आंगन में ग़ैर महरम औरतों के सामने जाएगा तो उनकी तरफ़ नज़र ज़रूर करेगा जो के शरअ् में हराम है

امتنع نظره الى و جهها

📔 तनवीरुल अबसार जिल्द 9 सफ़ह 532)

और औरतों का दूल्हा से हंसी मज़ाक़ करते हुए नोटों के साथ टमाटर मिर्च और बैगन वगैरह का माला पहनाना और सालियों और उसकी सहेलियों और मोहल्ले की लड़कियों का दूल्हा और बारातियों पर चावल, गेहूं, और नीम की फली वगैरह फेंकना सब ख़ुराफ़ात व वाहियात फ़िज़ूलखर्ची और बुराई पर मुश्तमिल होने की वजह से नाजाइज़ व हराम और गुनाह है, अव्वलन तो औरत व मर्द का इस तरह हंसी मज़ाक़ करना ही नाजाइज़ है

जैसा कि मुजद्दिदे आज़म सरकार आलाहज़रत अलैहिर्रहमह् फ़रमाते हैं

औरत व मर्द के मज़ाक़ का रिश्ता शरिअत ने कोई नहीं रखा यह शैतानी व हिंदवानी रसम है

📚 फ़तावा रज़वियह जिल्द 9 सफ़ह 170, निस्फ़ आखिर)

जब दूल्हा आंगन में जाता है, तो औरतों की भीड़ होती है, हंसी मज़ाक़ का सिलसिला चलता है, सालियां मज़ाक़ करती हैं और जूते चुराती हैं उसके अलावा और भी बहुत से ख़ुराफ़ात होते हैं, इसलिए यह रसम व रिवाज हुरमत पर मुश्तमिल होने के सबब हराम व नाजाइज़ है

📔 औरतों के जदीद और अहम मसाइल सफ़ह 148--149--150)

कत्बा अल अब्द खाकसार नाचीज़ मोहम्मद शफीक़ रजा़ रज़वी ख़तीब व इमाम सुन्नी मस्जिद हज़रत मन्सूर शाह रहमतुल्लाह अलैहि बस स्टैंड किशनपुर जि़ला फतेहपुर उत्तर प्रदेश

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