सवाल सफ़र के महीना को और हर महीना में 3--13--23--और 8--18--28 इन तारीख़ों को मनहूस जानना कैसा है
अल जवाब माहे सफ़र और मज़कूरा बाला (ऊपर ज़िक्र की गईं) तारीख़ों को मनहूस जानना बहुत बड़ी जहालत है
हदीसे पाक में है
हज़रत अबू हुरैरह रज़िअल्लाहू तआला अन्ह से रिवायत है कि रसूलल्लाह सल्लल्लाहू तआला अलैही वसल्लम ने फ़रमाया
لا ادوي ولاطيرة ولا هامة ولا صفر
यानी मर्ज़ का लगना नहीं, और ना बदफ़ाली है और ना हाम्मह यानी उल्लू है और ना सफर है
📚 बुख़ारी किताबुल तिब्ब बाब ला हाम्मत, जिल्द 2, सफ़ह 857)
तश़रीह व तौज़ीह👇🏿
हदीसे पाक में फ़रमाया गया के अदवी यानी मर्ज़ का मुतअद्दी होना और लगना कोई चीज़ नहीं, पहले के लोग यही समझते थे कि एक का मर्ज़ दूसरे को लग जाता है, इसलिए मजज़ूम और उसके अलावा दूसरी बीमारी में मुब्तिला होने वाले अश्ख़ास से दूर भागते थे, इसलिए फ़रमाया गया के मर्ज़ का लगना और फ़ैलना कोई चीज़ नहीं, और अब भी लोगों का यही हाल है के मरीज़ों से बहुत दूर भागते हैं
और ना बदफ़ाली कोई चीज़ है, यानी कहीं जाते वक़्त या किसी काम का इरादा करते वक़्त अगर किसी ने पूछ लिया या कुछ बोल दिया तो यह कहना कि इसने टोक दिया है अब हम नहीं जाएंगे या हमारा काम नहीं होगा, यह ग़लत और बेमाना ख़याल है बदफ़ाली के बजाय फ़ाले हसन (अच्छा फ़ाल) लेना चाहिए, कि अगर उसकी ज़बान से अच्छा कल्मा निकल गया तो यह हमारे लिए बेहतर ही होगा, यह फ़ाले हसन है
और हाम्मह यानी उल्लू को ज़माना ए जाहिलियत में अहले अरब बहुत मनहूस समझते थे और उसके मुताल्लिक़ मुख़्तलिफ़ क़िस्म के ख़यालात रखते थे, और अब भी लोग उसको मनहूस समझते हैं, जो कुछ भी हो हदीस ने उसके मुताल्लिक़ यह हिदायत की के इसका एतबार ना किया जाए, बल्कि (किताब--हयातुल हैवान, वगैरह में तो उल्लू को बेहतर परिंदा बताया गया है क्योंकि वह मखलूक़े ख़ुदा ख़ासकर इंसानों के हाले ज़ार पर बहुत मुतफ़क्किर रहता है कि यह कैसे ख़ुदा के बंदे हैं जो ख़ुदा को भूल कर ग़फ़लत की नींद सोए हुए हैं यही वजह है कि वह अक्सर रातों को जागता रहता है
और सफ़र के महीना को मनहूस समझकर शादी-ब्याह ना करना यह भी ख़्याले बात़िल है
हुज़ूर सदरुश्शरिअह बदरुत्तरीक़ह अल्लामा अमजद अली आज़मी अलैहिर्रहमह फ़रमाते हैं
माहे सफर को लोग मनहूस जानते हैं इसमें शादी ब्याह नहीं करते लड़कियों को रुखसत नहीं करते और भी इस क़िस्म के काम करने से परहेज़ करते हैं और सफ़र करने से गुरेज़ करते हैं खुसूसन माहे सफ़र की इब्तिदाई 13 तारीख़ें हैं बहुत ज़्यादा नहस मानी जाती हैं, और उनको तेरा तेज़ी कहते हैं, यह सब जहालत की बातें हैं हदीस में फ़रमाया के सफ़र कोई चीज़ नहीं यानी लोगों का इसे मनहूस समझना ग़लत है इसी तरह ज़ीक़अ्दा के महीना को भी बहुत लोग बुरा जानते हैं और उसको ख़ाली का महीना कहते हैं, यह भी ग़लत है और हर माह में 3--13--23--8--18--28 को मनहूस जानते हैं यह भी लग़्व बात है
📚 बहारे शरिअत हिस्सा 16 सफ़ह 257)
अल इन्तिबाह
असह और अहक़ यह है कि फ़ाल कोई चीज़ नहीं फ़ाल को हक़ समझना जाइज़ नहीं, (जो फ़ाल की बातों पर यक़ीन करे उसकी निस्बत) सहीह् हदीस में फ़रमाया
قد كفر بمانزل على محمد صلى الله تعالى عليه وسلم
यानी उसने उस चीज़ का कुफ़्र किया जो मुहम्मद सल्लल्लाहू तआला अलैही वसल्लम पर उतारी गई
📚 तिर्मिज़ी जिल्द 1 सफ़ह 35, बाब माजा फ़ी कराहियत अतयानुल हाइज़)
📔 औरतों के जदीद और अहम मसाइल सफ़ह 161---162)
कत्बा अल अब्द खाकसार नाचीज़ मोहम्मद शफीक़ रजा़ रज़वी ख़तीब व इमाम सुन्नी मस्जिद हज़रत मन्सूर शाह रहमतुल्लाह अलैहि बस स्टैंड किशनपुर जि़ला फतेहपुर उत्तर प्रदेश
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