औरतों का बैंक मे काम करना कैसा

सवाल इस ज़माने में जबकि फ़ित्ना व फ़साद आम हो चुका है, फ़िस्क़ व फ़ुजूर का दौर दौरा है, जवान लड़कियों का एयर होस्टेस (Year Hostes) कंपनियों, बैंकों, होटलों, सोशल नेटवर्किंग के आफिसों और दीगर बड़ी बड़ी कंपनियों और ऑफिसों में जाकर मर्दों के साथ बैठकर मुलाज़मत (ज़ोब) करना कैसा है जो लड़कियां या औरतें कस्बे मुआश (रोज़ी रोटी की तलाश में) मुलाज़मत (नौकरी करने पर) पर मजबूर हैं और तलबे मुआश (रोज़ी रोटी कपड़ा और दीगर ज़रूरियात) इंसानी जिंदगी में दाखिल है तो क्या इस हाजत (ज़रूरत) के पेशे नज़र कुछ क़ुयूद व शराइत के साथ औरतों को मुलाज़मत की इजाज़त दी जा सकती है

अल जवाब इस पुर फ़ितन दौर में जब्के फ़ित्ना व फ़साद बहुत आम हो चुका है हर चहार जानिब फ़िस्क़ो फ़ुजूर का दौर दौरा है, तो अब फ़ी ज़माना जवान लड़कियों या औरतों का एयर होस्टेस कंपनियों सोशल नेटवर्किंग ऑफिसों बैंकों, बड़ी-बड़ी कंपनियों और होटल वगैरह में जाकर अजनबी मर्द के साथ बैठकर मुलाज़मत करना नाजाइज़ व हराम है

अव्वलन तो औरतों और जवान लड़कियों का इस तरह बेपर्दा निकलना ही हराम है गैर मर्दों के साथ बैठकर काम करना और मुलाज़मत करना तो बहुत दूर की बात है, इसलिए के औरत छुपाने की चीज़ है ना के बाहर बेपर्दा घूमने-फिरने और काम करने की, औरत कहते ही उस चीज़ को है जो छुपी रहे

जैसा के हदीसे पाक में है

المراة عورة فاذا خرجت استشر فها الشيطان

हुज़ूर सल्लल्लाहू तआला अलैही वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया के,

औरत औरत है, यानी पर्दा में रखने की चीज़ है जब वह बाहर निकलती है तो शैतान उसे घूरता है

📘 तिर्मिज़ी जिल्द 1, सफ़ह 449)

और गुनिया शरहे मुनिया में हज़रत अल्लामा शेख़ इब्राहीम हम्बली अलैहिर्रहमतू वर्रिज़वान तेहरीर फ़रमाते हैं

ان يكون في زماننا التحريم لما في خروجهن من الفساد

इस इबारत का खुलासा यह है कि इस ज़माने में औरतों का बाहर निकलना हराम है, उनके निकलने में फ़साद है

📘 ग़ुनिया शरहे मुनिया सफ़ह 594)

हां तलबे मुआश की खातिर हाजत के पेशे नज़र 5 क़ुयूद व शराइत के साथ औरतों को मुलाज़मत की इजाज़त दी जा सकती है लेकिन उनमें से अगर एक भी कम हुआ तो हराम है

जैसा के आला हज़रत अलैहिर्रहमतू वर्रिज़वान इस तरह के एक इस्तिफ़्ता के जवाब में फ़रमाते हैं

यहां 5, शराइत हैं👇

1-कपड़ा बारीक ना हो जिनसे सर के बाल या कलाई वगैरह सतर का कोई हिस्सा चमके

2-कपड़े तंग व चुश्त ना हों जो बदन की हैयात ज़ाहिर करें

3-बाल या गले या पेट या कलाई या पिंडली का कोई हिस्सा ज़ाहिर ना होता हो

4-कभी ना मेहरम के साथ किसी ख़फ़ीफ़ देर के लिए तन्हाई ना होती हो

5-उसके यहां रहने या बाहर आने जाने में कोई मुज़ना फ़ित्ना ना हो

पांचों शर्तें अगर जमा हैं तो हर्ज नहीं, और अगर इनमें एक भी कम है तो हराम है

📚 फ़तावा रज़वियह जिल्द 9, सफ़ह 252 निस्फ़ आखिर

लिहाजा आम हालात में खौफे फ़ित्ना व फसादे ज़माना के सबब औरतों को मुलाज़मत की इजाज़त नहीं हां जो मुलाज़मत पर मजबूर हों उन्हें मज़कूरा बाला (ऊपर बताई गई) शर्तों की मुकम्मल पाबंदी करते हुए कस्बे मुआश की इजाज़त दी जा सकती है लेकिन अब उन मज़कूरा शर्तों का निबाह कहां यानी इस दौर में मज़कूरा शराइत की पाबंदी मुश्किल है कि कोई कर सके तो अब उसकी भी इजाज़त नहीं दी जा सकती

📔 औरतों के जदीद और अहम मसाइल सफ़ह.109--110--111)

अज़ क़लम 🌹 खाकसार नाचीज़ मोहम्मद शफीक़ रज़ा रिज़वी खतीब व इमाम (सुन्नी मस्जिद हज़रत मनसूर शाह रहमतुल्लाह अलैह बस स्टॉप किशनपुर अल हिंद)

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