ज़िक्र शहादत सुनकर आंसू अ जाए तो क्या हुक्म है

 


सवाल

मैदाने करबला में हज़रत इमाम हुसैन रदियल्लाहु तआला अन्हु और उन के रुफका पर जुल्म व सितम किए गए उन्हें पढ़ कर या सुन कर दिल गमगीन हो जाए आंखों से आंसू छलक परें। तो क्या यह भी मना है ?

जवाब

आला हजरत रदियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं जी नहीं जैसा कि सरकारे दो आलम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं। अरे सुनते नहीं हो बेशक अल्लाह न ऑसुओं से रोने पर अज़ाब करे न किलके गम पर (ज़बान की तरफ से इशारा करके फरमाया) हां उस पर अजाब है या रहम फरमाए। इस को बुखारी व मुस्लिम ने हजरत अब्दुल्लाह इल्ने उमर रदियल्लाहु अन्हु से रिवायत किया है। 

📕(सही बुखारी किताबुल जनाइज वाबुल यका इन्दल मरीज़ जिल्द 1 सफा 174) 

📕 इसी तरह फतावा आलमगीरी में भी है जामिउल मुजमिरात से (बुलन्द आवाज़ से रोना) और करना बीन करना (इस्लाम में) जायज नहीं लेकिन बिगैर आवाज़ के रोना और बहाना ममनूअ (मना) नही। आला हजरत इमाम अहमद रज़ा खान रदियल्लाहु अन्हु इरशाद फरमाते हैं कौन सा सुन्नी होगा जिसे वाकिए करबला का गम नही। या उस की याद से दिल महजून (मलाल) और आंखे पुरनम नहीं, हां मसाइब में हम को सब्र का हुक्म फरमाया है। जजअ फजअ (रोना, पीटना, सर पटकना, चिल्लाने) को शरीअत मना फरमाती है। और जिसे वाकई दिल में गम न हो उसे झूठा इजहारे गम (गम) रिया (दिखावा) है और कसदन (जान बूझ कर) गम आवरी और और गम परवरी खिलाफे रज़ा है। जिसे उस का गम न हो। उसे ये गम न रहना चाहिए बल्कि उसे गम न होने का गम होना चाहिए कि उस की मुहब्बत नाकिस है। और जिस की महब्बत नाकिस हो उस का ईमान नाकिस है

वल्लाहु तआला अअलमु बिस्सवाब


📕 (फतावा रजविया शरीफ जिल्द 24 सफा 487-488)


✍🏻 अज़ क़लम 🌹 खाकसार ना चीज़ मोहम्मद शफीक़ रज़ा रिज़वी खतीब व इमाम (सुन्नी मस्जिद हज़रत मनसूर शाह रहमतुल्लाह अलैह बस स्टॉप किशनपुर अल हिंद)

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