मुहर्रम व सफर में ब्याह शादी न करना और सोग मनाना❓


मुहर्रम व सफर में ब्याह शादी न करना और सोग मनाना❓

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माहे मुहर्रम में कितनी रसमें, बिदअतें आर खुराफातें आजकल मुसलमानों में राइज हो गई हैं उनका शुमार करना भी मुश्किल है । उन्हीं में से एक यह भी कि यह महीना सोग और गमी का महीना है । इस माह में ब्याह शादी न की जायें । हालांकि इस्लाम में किसी भी मय्यत का तीन दिन से ज़्यादा गम मनाना नाजाइज़ है और इन अय्याम में व्याह शादी बुरा समझना गुनाह है । निकाह साल के किसी दिन में मना नहीं, चाहे मुहर्रम हो या सफर या और कोई महीना या दिन

आलाहज़रत अलैहिर्रहमतुवरिंदवान से पूछा गया 

👉 (1) बाज़ अहले सुन्नत व जमाअत अशरए मुहर्रम में न तो दिन भर रोटी पकाते हैं और न झाडू देते हैं कहते हैं बादे दफ़न ताज़िया रोटी पकाई जाएगी 

👉 (2) दस दिन में कपड़े नहीं उतारते 

👉 (3) माहे मुहर्रम में ब्याह शादी नहीं करते 

👉 (4) इन अय्याम में सिवाए इमाम हसन और इमाम हुसैन रदियल्लाहु तआला अन्हुमा के किसी और की नियाज़ व फ़ातिहा नहीं दिलाते यह जाइज़ है या नाजाइज़ ? तो आप ने जवाब में फ़रमाया पहली तीनों बातें सोग हैं और सोग हराम और चौथी बात जहालत । हर महीने में हर तारीख में हर वली की नियाज़ हर मुसलमान की फातिहा हो सकती है 

📚 (अहकामे शरीअत  हिस्सा अव्वल सफ़हा १२७)


दरअस्ल मुहर्रम में गम मनाना सोग करना फ़िरकए मलऊना शीओं और राफ़िज़ियों का काम है और खुशी मनाना मरदूद ख़ारिजियों का का शेवा और नियाज़ व फ़ातिहा दिलाना, नफ्ल पढ़ना, रोजे रखना मुसलमानों का काम है 

यूंही मुहर्रम में ताजियादारी करना, असनूई करबलाये उनमें मेले लगाना भी नाजाइज व गुनाह है 

📚 (ग़लत फहमियां और उनकी इस्लाह, सफ़्हा न.131/132)

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✍🏻 अज़ क़लम 🌹 खाकसार ना चीज़ मोहम्मद शफीक़ रज़ा रिज़वी खतीब व इमाम (सुन्नी मस्जिद हज़रत मनसूर शाह रहमतुल्लाह अलैह बस स्टॉप किशनपुर अल हिंद)

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