कुरबानी वाजिब होने के लिये कितना माल होना चाहिये
हर बालिग मुक़ीम मुसल्मान मर्द व औरत मालिके निसाब पर है कुरबानी वाजिब है
मालिके निसाब होने से मुराद येह है कि उस शख्स के पास साढ़े बावन तोले चांदी या उतनी मालिय्यत की रकम या उतनी मालिय्यत का तिजारत का माल या उतनी मालिय्यत का हाजते अस्लिय्या के इलावा सामान हो और उस पर अल्लाह या बन्दों का इतना कर्जा न हो जिसे अदा कर के ज़िक्र कर्दा निसाब बाकी न रहे
फुकहाए किराम फ़रमाते हैं हाजते अस्लिय्या (यानी ज़रूरिय्याते ज़िन्दगी) से मुराद वोह चीजें हैं जिन की उमूमन इन्सान को ज़रूरत होती है और इन के बिगैर गुज़रे अवकात में शदीद तंगी व दुश्वारी महसूस होती है जैसे रहने का घर पहनने के कपड़े सुवारी इल्मे दीन से मुतअल्लिक किताबें और पेशे से मुतअल्लिक औज़ार वगैरा
अगर हाजते अस्लिय्या की तारीफ़ पेशे नज़र रखी जाए तो बखूबी मालूम होगा कि हमारे घरों में बे शुमार चीजें ऐसी हैं कि जो हाजते अस्लिय्या में दाखिल नहीं चुनान्चे अगर इन की कीमत साढ़े बावन तोला चांदी के बराबर पहुंच गई। तो कुरबानी वाजिब होगी। अगर किसी शख्स के पास रिहाइशी मकान के इलावा मकान हो जो कि किराए पर हो या इस्तिमाली गाड़ियों के इलावा गाड़ियां हों जो किराए पर हों और उन के किराए पर ही उस शख्स की गुज़र बसर हो, इन चीज़ों की आमदनी ही उस के अहलो इयाल के नफ़के (यानी गुज़ारे) के लिये हो यूंही ज़िराअती (या'नी खेतीबाड़ी की) ज़मीन हो या भेंस या दीगर जानवर हों और उन से हासिल होने वाली आमदनी ही से उस का और अहलो इयाल का नफका (यानी खर्च) पूरा होता हो तो इन चीज़ों की मालियत/ कीमत अगर्चे निसाब से ज़ाइद हो इस की वज्ह से उस शख्स पर कुरबानी व सदकए फ़ित्र लाज़िम नहीं होगा अलबत्ता अगर उस ज़मीन या मकान या गाड़ी या दुकान या जानवर वगैरा से आमदनी न हो या आमदनी हो लेकिन गुज़र बसर व नफ़कए अहलो इयाल के लिये दीगर आमदनी हो तो ऐसी सूरत में इन चीज़ों की मालियत निसाब की मिक्दार होने पर कुरबानी व सदकए फ़ित्र वाजिब होगा
📚अब्लक़ घोड़े सुवार सफ़ा. नः 06
✍🏻 अज़ क़लम 🌹 खाकसार ना चीज़ मोहम्मद शफीक़ रज़ा रिज़वी खतीब व इमाम (सुन्नी मस्जिद हज़रत मनसूर शाह रहमतुल्लाह अलैह बस स्टॉप किशनपुर अल हिंद)
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