क़ुरबानी के वक़्त में क़ुरबानी करना ही लाज़िम है


क़ुरबानी के वक़्त में क़ुरबानी करना ही लाज़िम है

क़ुरबानी के वक़्त में क़ुरबानी करना ही लाज़िम है कोई दूसरी चीज़ इसके क़ाइम मक़ाम नही हो सकती मसलन बजाए क़ुरबानी के बक़रा या उस की क़ीमत सदक़ा कर दी जाए ये नाकाफी है

 📚आलमगिरी  ज़िल्द 05 सफ्ह 293 बहारे शरीअत ज़िल्द 3 सफ्ह नः 335

क़ुरबानी के जानवर की उम्र ऊंट 5 साल का बैल दो साल का, बकरा (इसमें बकरी, दुम्बा और भेड़ नर व मादा दोनों शामिल है) एक साल का। इससे कम उम्र हो तो क़ुरबानी जाइज़ नही, ज़्यादा हो तो जाइज़ बल्कि अफज़ल है

दुम्बा या भेड़ का 6 महीने का बच्चा अगर इतना बड़ा हो की दूर से देखने में साल भर का मालुम हो तो उसकी क़ुरबानी जाइज़ है

📚दुर्रेमुखतार ज़िल्द 09 सफ्ह नः 533

याद रखिये  मुतलकन 6 माह के दुम्बे की क़ुरबानी जाइज़ नही, इस का इतना तगड़ा और क़द आवर होना ज़रूरी है कि दूर से देखने में साल भर का लगे। अगर 6 माह बल्कि साल में एक दिन भी कम उम्र का दुम्बे या भेड़ का बच्चा दूर से देखने में साल भर का नही लगता तो उस की क़ुरबानी नही होगी

क़ुरबानी का जानवर बे ऐब होना ज़रूरी है अगर थोडा सा ऐब हो (मसलन कान में चिर या सुराख हो) तो क़ुरबानी मकरूह होगी और ज़्यादा ऐब हो तो क़ुरबानी नही होगी

ब हवाला बहारे शरीअत ज़िल्द 03 सफ्ह नः340


✍🏻 अज़ क़लम 🌹 खाकसार ना चीज़ मोहम्मद शफीक़ रज़ा रिज़वी खतीब व इमाम (सुन्नी मस्जिद हज़रत मनसूर शाह रहमतुल्लाह अलैह बस स्टॉप किशनपुर अल हिंद)

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