ज़कात से मुतअल्लिक़ कुछ ग़लतफहमियां ?
❈•───islami────❈───malumat────•❈
बाअज़ लोग फ़क़ीरों, मिस्कीनों, मस्जिदों, मदरसों को यूंही पैसे देते रहते हैं, और बाक़ायदा ज़कात नहीं निकालते, उनसे कहा जाता है कि आप ज़कात निकालिए तो कह देते हैं कि हम वैसे ही राहे खुदा में काफी ख़र्च करते रहते हैं..! यह उनकी सख्त ग़लतफहमी है आप हज़ार राहे खुदा में ख़र्च कर दें... लेकिन जब तक हिसाब करके नियते ज़कात से ज़कात अदा नहीं करेंगे आपके ये अख़राजात जो राहे खुदा ही में आपने किए हैं यह ज़कात ना निकालने के आज़ाब और बवाल से आपको बचा नहीं सकेंगे...! "हदीस शरीफ में कि जिसको अल्लाह तआला माल दे और वह उसकी ज़कात अदा ना करें तो कयामत के दिन वह माल गंजे सांप की शक्ल में कर दिया जाएगा जिसके सर पर दो चोटियां होंगी वह सांप उनके गले में तोक़ बना कर डाल दिया जाएगा। फिर उसकी बांछें पकड़ेगा और कहेगा मैं तेरा माल हूं, मैं तेरा खज़ाना हूं। खुलासा यह कि राहे खुदा में खर्च करने के जितने तरीके हैं उनमें सबसे अव्वल ज़कात है। नियाज़ ओ नज़र और फातिहा वगैरा भी उसी माल से की जाए जिसकी ज़कात अदा की गई हो,, वरना वह काबिले कुबूल नहीं....।अपनी ज़कात खुद खाते रहना और राहे खुदा में खर्च करने वाले बन्ना बहुत बड़ी ग़लतफहमी है मसाइल-ए-ज़कात ओलमा से मालूम किए जाएं और बक़ायदा ज़कात निकाली जाए ताकि नियाज़ और नज़र और सदक़ा ओ खैरात भी कुबूल हो सके
📚 (ग़लत फेहमियां और उनकी इस्लाह, सफ़्हा न. 73,74)
✍🏻 अज़ क़लम 🌹 खाकसार ना चीज़ मोहम्मद शफीक़ रज़ा रिज़वी खतीब व इमाम (सुन्नी मस्जिद हज़रत मनसूर शाह रहमतुल्लाह अलैह बस स्टॉप किशनपुर अल हिंद)
एक टिप्पणी भेजें