नमाज़ में 'नफ़िलों' को फर्ज़ो वाजिब समझना ?


 नमाज़ में नफ़िलों' को फर्ज़ो वाजिब समझना ?

❈•───islami────❈───malumat────•❈

नमाज़े ज़ोहर, मग़रिब और इशा के आखिर में, और इशा में वित्रों से पहले 2 रकात नफिल पढ़ने का रिवाज है, और उनको पढ़ने में हिकमत और सवाब है,, लिहाज़ा पढ़ लेना ही मुनासिब है, लेकिन उन नफ़िलों को फर्ज़ो वाजिब और ज़रूरी ख्याल करना, और ना पढ़ने वालों को टोकना, और उन पर मलामत करना, और बुरा भला कहना ग़लत है। इस्लाम में ज़्यादती और शरई हुदूद से आगे बढ़ना है। इस्लाम में नफ़िलो मुस्तहब उसे कहते हैं जिसके करने पर सवाब हो और ना करने पर कोई गुनाह और अज़ाब नहीं तो जब अल्लाह तआला ने उसके न अदा करने वाले पर कोई गुनाह और अज़ाब नहीं रखा तो आपको भी उस पर मलामत करने और बुरा भला कहने का कोई हक नहीं, और जब ख़ुदा ए तआला नफिल छोड़ने पर नाराज़ नहीं तो आप टोकने वाले कौन हुए ?

इस्लाम में अल्लाह तआला ने अपने बंदों को जो रिआयतें और आसानियां दी है उन्हें लोगों तक पहुंचाना ज़रूरी है अगर आप ऐसा नहीं कर रहे हैं तो आप इस्लाम को बजाए नफ़ेअ के नुक़सान पहुंचा रहे हैं, और लोग यह ख्याल कर बैठेंगे कि हम इस्लाम पर चल ही नहीं सकते क्योंकि वह एक मुश्किल मज़हब है लिहाज़ा उसकी इशाअत में कमी वाक़ै होगी। आज कितने ऐसे लोग हैं जो सिर्फ इसलिए नमाज़ नहीं पढ़ते कि वह समझते हैं, हम नमाज़ पढ़ ही नहीं सकते और मसाइले नमाज़ और तहारत, पाकी और नापाकी से पूरी तरह वाक़फ़ियत ना होने और खुदा और रसूल की अता फरमाए हुई बाअज़ रीआयतों और आसानियों पर आगाह ना होने की बिना पर नमाज़ को छोड़ना गवारा कर लेते हैं,, और उन बातों से नफ़ाअ (फ़ायदा) नहीं उठाते। हालांकि एक वक्त की नमाज़ भी क़सदन (यानी जानबूझकर) छोड़ देना इस्लाम में कुफ्र और शिर्क के बाद सबसे बड़ा गुनाह है

ओलामा और आइम्मा ए मसाजिद से मेरी गुज़ारिश है कि वह अवाम का ख़ौफ़ न करके उन्हें इस्लामी एहकाम पर अमल करने में मौका ब'मोका जो छूट दी गई और जो आसानियां है उन्हें ज़रूर बताएं, ताकि ज़्यादा से ज़्यादा लोग इस्लाम और इस्लामियात को अपनाएं। इन्हीं नफ़्लों के बारे में देखा गया है कि अगर कोई शख्स इन्हें ना पड़े तो कुछ अनपढ़ उस पर इल्ज़ाम लगाते हुए यह तक कह देते हैं कि नमाज़ पढ़ें तो पूरी पढ़ें इससे तो ना पढ़ना अच्छा है,, यह एक बड़ी जिहालत की बात है जो वह कहते हैं, हालांकि सही बात यह है कि नफिल तो नफिल अगर कोई शख्स सुन्नते भी छोड़ दें सिर्फ फ़र्ज़ पढ़ ले तो वह नमाज़ को जानबूझकर बिलकुल छोड़ देने वालों से बहुत ज़्यादा बेहतर है, और उसे बे नमाज़ी नहीं कहा जा सकता, हां सुन्नते छोड़ देने की वजह से गुनहगार ज़रूर है क्योंकि सुन्नतों को छोड़ने की इजाज़त नहीं और इन्हें जानबूझकर छोड़ देने की आदत बना लेना गुनाह और मना है

हां अगर रवारवि में, उलझन और परेशानी और जल्दी में कोई ऐसा मौका है कि आप सुन्नतों के साथ मुकम्मल नमाज़ नहीं पढ़ सकते तो सिर्फ फ़र्ज़ और वित्र पढ़ लेने में कोई हर्ज और गुनाह नहीं है मसअलन वक्त तंग है पूरी नमाज़ नहीं पढ़ी जा सकती तो सिर्फ फर्ज़ पढ़ लेना काफी है

खुलासा यह के ज़ोहर और मग़रीब और इशा में जो नफिल अदा किए जाते हैं उन्हें अदा करना बहुत अच्छा है मुनासिब और बेहतर है और पढ़ना चाहिए,, लेकिन उन्हें फ़र्ज़ और वाजिब और ज़रूरी समझना और ना अदा करने वालों को टोकना उन्हें उस छोड़ने पर भला बुरा कहना ग़लत है जिसकी इस्लाह ज़रूरी है

📚 (ग़लत फेहमियां और उनकी इस्लाह, सफ़्हा न. 43,44,45)


✍🏻 अज़ क़लम 🌹 खाकसार ना चीज़ मोहम्मद शफीक़ रज़ा रिज़वी खतीब व इमाम (सुन्नी मस्जिद हज़रत मनसूर शाह रहमतुल्लाह अलैह बस स्टॉप किशनपुर अल हिंद)

Post a Comment

और नया पुराने