ऐसाल ए सवाब का खाना खाने का हुक्म



 मय्यत का खाना (यानि जो इंतिक़ाल कर जाये उसके दफ़न के बाद और तीजे, दसवें, बीसवें, और चालीसवें का खाना) कैसा है ?

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मय्यत के तीजे, दसवें या 40वें वग़ैरह के मौक़ै पर दाअवत कर के खाना खिलाने का जो रिवाज है यह भी महज़ ग़लत और ख़िलाफ़ ए शराअ (शरियत के ख़िलाफ़) है। हां ग़रीबों और फकीरों को बुलाकर खिलाने में हर्ज नहीं। आला हज़रत फरमाते हैं "मुर्दे का खाना सिर्फ फ़ुक़रा (फ़क़ीरों) के लिए है, आम दाअवत के तौर पर जो करते हैं यह मना है, ग़नी (मालदार) ना खाएं

📖 (अहकामे शरीअत, हिस्सा 2, सफ़्हा 16) 

और फरमाते हैं मौत मै दाअवत बे माअना है, फ़तहुल-क़दीर मै इसे बिदअते मुस्तक़'बिहा (बुराइयों की जड़) फरमाया

📚 (ग़लत फहमियां और उनकी इस्लाह, सफ़्हा न. 56)

✍🏻 अज़ क़लम 🌹 खाकसार ना चीज़ मोहम्मद शफीक़ रज़ा रिज़वी खतीब व इमाम (सुन्नी मस्जिद हज़रत मनसूर शाह रहमतुल्लाह अलैह बस स्टॉप किशनपुर अल हिंद)

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