मग़रिब और इशा की नमाज़ कब तक पढ़ी जा सकती है ?

 मग़रिब और इशा की नमाज़ कब तक पढ़ी जा सकती है ?

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काफी लोग थोड़ा सा अंधेरा होते ही यह ख़्याल करते हैं कि मग़रिब की नमाज़ का वक़्त निकल गया अब नमाज़ क़ज़ा हो गई और बे वजह नमाज़ छोड़ देते हैं या क़ज़ा की नियत से पढ़ते हैं मग़रिब की नमाज़ का वक्त गुरूबे आफ़ताब (सूरज के डूबने) से लेकर गुरूबे शफ़क़ तक है (और शफ़क़ उस सफेदी का नाम है जो पश्चिम की तरफ़ सूरज डूबने के बाद उत्तर दक्षिण सुबह सादिक़ की तरह फैलती है

हां मग़रिब की नमाज़ जल्दी पढ़ना मुस्तहब है और बिला उज़्र दो रकातों की मिक़दार देर लगाना मकरूहे तंज़ीही (यानी ख़िलाफ़ ए ऊला) है और बिला उज़्र इतनी देर लगाना जिसमें कसरत से सितारे ज़ाहिर हो जाएं मकरूहे तहरीमी और गुनाह है

📕 (अहकामे शरीअत, सफ़्हा 137)

हां अगर ना पढ़ी हो तो पढ़े और जब तक ईशा का वक्त शुरू नहीं हुआ है तब तक अदा ही होगी। क़ज़ा नहीं और यह वक्त सूरज डूबने के बाद कम से कम एक घंटा 18 मिनट और ज़्यादा से ज़्यादा एक घंटा 35 मिनट है जो मौसम के लिहाज़ से घटता बढ़ता रहता है। यानी 1 घंटे के ऊपर 18 से 35 मिनट के दरमियान घूमता रहता है, ईशा की नमाज़ के बारे में भी कुछ लोग समझते हैं कि इस का वक्त 12:00 बजे तक रहता है यह भी ग़लत है ईशा की नमाज़ का वक्त फ़जरे सादिक़ तुलुअ होने यानि सहरी का वक्त ख़त्म होने तक रहता है हां तिहाई रात से ज़्यादा ताख़ीर करना (बिला वजह) मकरूह है


📚 (ग़लत फेहमियां और उनकी इस्लाह, सफ़्हा न. 36,37)


✍🏻 अज़ क़लम 🌹 खाकसार ना चीज़ मोहम्मद शफीक़ रज़ा रिज़वी खतीब व इमाम (सुन्नी मस्जिद हज़रत मनसूर शाह रहमतुल्लाह अलैह बस स्टॉप किशनपुर अल हिंद)

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