क्या मियां बीवी एक साथ नमाज़ पढ़ सकते हैं
✿➺ सुवाल
क्या फरमाते हैं मुफ्तीयाने किराम दर्जे जेल मसअला के बारे मे की क्या कोई शौहर और बीवी एक जमा'अत के साथ अपने घर मे नमाज़ पढ़ सकते हैं?
❀➺ जवाब
हर ज़ी-अक्ल़(अ़क़्ल वाले) औरत को ये मेरा रोशन ब्यान है,
ता-उम्र उसके हक़ मे उसका शोहर ही इमाम है
हर जी-अक्ल मर्द पर ये दलील मेरी क़वी है,
हर औरत उसके हक़ मे ता-उमर मुफ्तदी है
☞हमेशा से सभी तारीफ उसी अज़मत वाले अल्लाह की जिसने मर्द को अपनी बीवी के हक़ मे इमाम किया सरदार बनाया और औरत को उसी की पेरवी का हुक्म दिया और शोहर के लिए राहते-रूह ओ क़ल्बों-जिगर, यानी ता उमर इसकी हमसफ़र, से आलमे शोहर को ज़ीनत बख़्शी, और हर लम्हा दुरूद उस हबीब पर जिसने 11 को अपना खास मुक्तदी किया और हश्र मे तो वही सबका इमाम होगा, और सलाम अहले बैत और शहीद ए करबला और ज़ख़्मी ए करबला पर मर्द को इलाक़े की मस्जिद मे फ़र्ज़ नमाज़ जमाअत से पढ़ना वाजिब है, और किसी शरई उजर के साथ अगर जमाअत तर्क हो गई तो घर पर फ़र्ज़ नमाज़ पढ़ सकता है, और मेहरम और बीवी के साथ जमाअत भी का'इम करके पढ़ने मे भी हर्ज नही, और इमाम बनने वाले में इमामत की शराइत पाई जाती हो, मसलन कम से कम इतनी क़िराअत जानता हो की नमाज़ फ़ासिद ना कर दे, और खुद ऐलानिया फासिक ना हो, और तहारत और नमाज़ के मसाइल से भी वाक़िफ़ हो तो जमाअत से बीवी के साथ बल्कि हर मेहरम यानी बहैन, मां वगैरा के साथ भी नमाज़, को घर मे बा-जमाअत अदा कर सकता है
जैसा की आलाहज़रत इमाम अहले सुन्नत, अज़ीम उल बरकत, अज़ीम उल मर्तबत मुजद्दिदे दीन व मिल्लत, परवाना ए शमा ए रिसालत, इमाम ए इश्क ओ मुहब्बत, बली ए नेमत, पीर ए तरीक़त, आलिम ए शरीअत, हामिये सुन्नत माहिए बिदअत, का'ताए नज़दियत, बाइस ए खैर ओ बरकत, अल - हाज, अल-हाफ़िज़, अल-मुफ़्ती, असशाह इमाम अहमद रज़ा (अलैहीररेहमा) अपनी मकबूल ए दो जहाँ, तस्नीफ, फतावा रज़विया जिल्द: 6, सफा: 492, पर इरशाद फरमाते हैं
और अगर जमाअत मे जितनी औरतें उसकी मेहरम या बीवी या हद्दे शहवत तक ना पहुँची लड़कियों के सिवा (कोई) नही तो (जमाअत से नमाज़ पढ़ना) बिला कराहत जाइज़ है, और ना-मेहरम (शहवत को पहुंची हुई) हो तो मकरूह बहरहाल
बहारे शरीअत जिल्द:1, सफा:584, पर है
जिस घर मे औरतें ही औरतें हो उस घर मे मर्द को उनकी इमामत नाजाइज़, हाँ, अगर उन औरतों में, उसकी नसबी महारीम हो, या बीवी... (तो जमाअत से नमाज़ जाइज़ है)
मगर इस सूरत मे जब की इमाम मर्द हो और औरत मुक़्तदी तो औरत यानी बीवी मर्द के पीछे खड़ी होगी ना की बराबर मे, की औरत का मर्द के बराबर खड़े होने से नमाज़ मकरूह होगी और इस तरह खड़े होना नाजाइज़ होगा
फतावा काज़ी-ख़ान जिल्द:1, सफा:48, पर है
☞ किसी औरत ने जब अपने शोहर के साथ घर मे नमाज़ अदा की हो, अगर उसके क़दम शोहर के क़दम के मुक़ाबिल हों, तो दोनो की नमाज़ बा जमाअत जाइज़ ना होगी, और अगर उस (बीवी) का क़दम शोहर के क़दम के पीछे, है (या औरत का क़दम लंबा होने की वजह से औरत का सर हालत ए सजदा मे शोहर के सर से आगे होता हो) फिर भी दोनो की नमाज़ दुरुस्त होगी, क्यूंकी ऐतबार क़दम का है
फतावा अलामगीरी जिल्द:1, सफा:88, पर है
अगर अकेली औरत मुक्तदी है तो पीछे खड़ी हो, और ज़्यादा औरतें हो जब भी यही हुक्म है
फतावा रज़विया जिल्द:6 सफा:492, पर है
अगर औरत इस क़दर पीछे खड़ी है की उसका क़दम मर्द के क़दम या किसी उजव के मुहाज़ी नही तो (बीवी अपने शोहर के पीछे नमाज़ मे) इक़तिदा सही है और दोनों की नमाज हो जाएगी
📚ह़वाला पर्दादारी, सफा नं.22
✒️मौलाना अब्दुल लतीफ नईमी रज़वी क़ादरी बड़ा रहुवा बायसी पूर्णियाँ बिहार
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