मस्जिद मे जूते चप्पल पहन कर नमाज़ पढ़ना कैसा ?



 मस्जिद में जूते-चप्पल पहनकर नमाज़ / मस्जिद में जूते-चप्पल पहनकर जाने का हुक्म

अस्सलामु अलैकुम व रहमतुल्लाहि व बरकातुह

मस्जिद में जूते पहनकर नमाज़ पढ़ना कैसा है? तशफ़्फ़ी-बख़्श जवाब इनायत फ़रमाएँ।

सायल: अबुल आरिद़ रज़ा रज़वी

वअलैकुम अस्सलाम व रहमतुल्लाहि व बरकातुह

जवाब: अगर जूते नए, गैर-इस्तेमाल किए हुए हों और सुन्नते-सज्दा में मख़ल न हों तो उन्हें पहनकर मस्जिद में नमाज़ पढ़ना जायज़ है

बहर-उर-राइक में है हज़रत अली रज़ियल्लाहु अन्हु के दो जोड़े जूतों के थे। जब वुज़ू करते तो उनमें से एक पहनकर मस्जिद के दरवाज़े तक जाते, फिर उसे उतारते और दूसरा पहनते और मस्जिद में अपनी नमाज़ की जगह तक जाते (जिल्द 2 सफ़ा 34)

फ़तावा-ए-रज़विया में है: फिर अगर ऐसे ही जूते हों कि सुन्नते-सज्दा में ख़लल न डालें तो अगर वे नए बिल्कुल गैर-इस्तेमाल किए हुए हों तो उन्हें पहनकर नमाज़ पढ़ने में हरज नहीं बल्कि अफ़ज़ल है, अगरचे मस्जिद में हों (जिल्द 3 सफ़ा 444)

मगर हमारे ज़माने में मस्जिद में जूते-चप्पल पहनकर जाना ख़िलाफ़-ए-अदब है, इसलिए मस्जिद में जूते-चप्पल पहनकर जाने से एहतियात करें

वल्लाहु तआला आ’लमु बिस्सवाब

कत्बा : शान मोहम्मद अल-मिस्बाही अल-क़ादरी 27 जुलाई 2018

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