इमाम के ताल्लुक से कुछ जरूरी और अहम मसाइल

 


सवाल किन लोगों को इमाम बनाना मकरूह है

जवाब गंवार अन्धे वलदुज़्ज़िना ना मर्द कोढ़ी फ़ालिज़ की बीमारी वाले बरस वाला जिसकी बरस ज़ाहिर हो इन सबको इमाम बनाना मकरूहे तन्ज़ीही है और कराहत उस वक़्त है जब्के जमाअत में और कोई उनसे बेहतर हो और अगर यही मुस्तहिक़े इमामत है तो कराहत नहीं और अंधे की इमामत में तो ख़फ़ीफ़ कराहत है

📚 बहारे शरीअत)📗 अनवारे शरीअत, उर्दू, पेज 61/62)

सवाल जमाअत फ़र्ज़ है या वाजिब

जवाब जमाअत वाजिब है, जमाअत के साथ एक नमाज़ पढ़ने से सत्ताइस (27) नमाज़ों का सवाब मिलता है, बग़ैर उज़्र एक बार भी छोड़ने वाला गुनाहगार और छोड़ने की आदत कर लेने वाला फ़ासिक़ है 📚 दुर्रेमुख़्तार,📚 बहारे शरीअत

सवाल जमाअत छोड़ने के उज़्र क्या क्या हैं

जवाब अंधा या अपाहिज होना इतना बूढ़ा होना या बीमार होना के मस्जिद तक जाने से आजिज़ हो सख़्त बारिश या शदीद कीचड़ का हाइल होना आंधी या सख़्त अंधेरी या सख़्त सर्दी का होना और पाख़ाना या पेशाब की शदीद हाजत होना वगैरह 📚 दुर्रेमुख़्तार

सवाल इमामत का सबसे ज़्यादा हक़दार कौन है,

जवाब इमामत का सबसे ज़्यादा हक़दार वो शख़्स है जो नमाज़ व तहारत (पाकी) के अहकाम सबसे ज़्यादा जानता हो फिर वो शख़्स जो तजवीद यानी क़िराअत का इल्म ज़्यादा रखता हो, अगर कई शख़्स इन बातों में बराबर हों तो वो शख़्स ज़्यादा हक़दार है जो ज़्यादा मुत्तकी हो अगर उसमें भी बराबर हों तो ज़्यादा उम्र वाला फिर जिसके अख़्लाक़ ज़्यादा अच्छे हों फिर ज़्यादा तहज्जुद गुज़ार, ग़र्ज़ ये के चन्द आदमी बराबर हों तो उनमें जो शरई तरजीह रखता हो वोही ज़्यादा हक़दार है 📚 दुर्रेमुख़्तार 📚 बहारे शरीअत

सवाल किन लोगों को इमाम बनाना गुनाह है

जवाब फ़ासिक़े मुअल्लिन जैसे शराबी,जुआरी,ज़िना कार,सूद ख़ोर,चुग़ल ख़ोर,और दाढ़ी मुंडाने वाला या दाढ़ी कटाकर एक मुश्त से कम रखने वाला और वो बदमज़हब के जिसकी बदमज़हबी हद्दे कुफ़्र को ना पहुंची हो इन लोगों को इमाम बनाना गुनाह है और इनके पीछे नमाज़ मकरूहे तहरीमी वाजिबुल इआदा है, (यानी नमाज़ दोबारा पढ़ें)📚 दुर्रेमुख़्तार 📚 रद्दुलमोहतार

सवाल वहाबी देवबंदी के पीछे नमाज़ पढ़ना कैसा है

जवाब वहाबी देवबंदी के अक़ीदे कुफ़्रीया हैं मसलन उन लोगों का अक़ीदा ये है के जैसा इल्म हुज़ूर सल्लल्लाहू तआला अलैहि वसल्लम को हासिल है ऐसा इल्म तो बच्चों पागलों और जानवरों को भी हासिल है जैसा के उनके पेशवा मौलवी अशरफ़ अली थानवी ने अपनी किताब📕हिफ़ज़ुल ईमान, सफ़ह 8, पर हुज़ूर अलैहिस्सलातू वस्सलाम के लिए कुल इल्म ए ग़ैब का इन्कार करते हुए सिर्फ़ बअज़ इल्म ए ग़ैब के बारे में यूं लिखा के इसमें हुज़ूर की क्या तख़्सीस है ऐसा इल्म तो ज़ैद व अम्रू बल्के हर सबीह व मजनून बल्के जमी हैवानात व बहाइम के लिए भी हासिल है (मअज़ अल्लाही रब्बिल आलमीन)और वहाबीयों के बड़े गुरु इस्माईल देहेलवी ने अपनी किताब📕 यक रोज़ी, सफ़ह 145, पर लिखा अल्लाह झूट बोल सकता है और इसी तरह देवबंदी मौलवी रशीद अहमद गंगोही ने लिखा के अल्लाह झूट बोल सकता है 📕 फ़तावा रशीदियह और यही इस्माईल देहेलवी ने तक़्वीयतुल ईमान में लिखा हज़रात अम्बिया व औलिया को ग़ैबदां या मददगार मानने वाला मुसलमान नहीं बल्के मुशरिक व काफ़िर है इसी तरह मौलवी रशीद अहमद गंगोही ने अपनी फ़तावा रशीदियह में लिखा और इसी तरह वहाबी देवबंदीयों के पेशवाओं की किताबों में बहुत से कुफ़्री अक़ीदे हैं जिन्हें वो हक़ मानते हैं इसलिए उनके पीछे नमाज़ पढ़ना नाजाइज़ व गुनाह है अगर किसी ने ग़लती से पढ़ली तो फिर से पढ़े अगर दोबारा नहीं पढ़ेगा तो गुनाहगार होगा 📚 बहारे शरीअत वग़ैरह)

और जो वहाबी देवबंदी अहले हदीस वग़ैरह फ़िर्क़ाहाए बातिला के कुफ़्रीया अक़ीदे को जानकर भी उनको मुसलमान माने वो काफ़िर है 📗 फ़तावा हुसामुल हरामेंन 📚 बहारे शरीअत)📗 अनवारे शरीअत, उर्दू, पेज 61/62)

कत्बा अल अब्द खाकसार नाचीज़ मोहम्मद शफीक़ रजा़ रज़वी ख़तीब व इमाम सुन्नी मस्जिद हज़रत मन्सूर शाह रहमतुल्लाह अलैहि बस स्टैंड किशनपुर जि़ला फतेहपुर उत्तर प्रदेश

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