सह़री का नायाब तोह़फा



بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ

اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ


  हुज़ूर صلى الله عليه وسلم ने फ़रमाया जो कोई इस दुआ़ को सह़री के वक़्त 7 मर्तबा पढ़ेगा अल्लाह हर सीतारे के बदले ऊसे एक हज़ार नेकियां अ़ता फ़रमाएगा, इतने ही गूनाह मिटाएगा और उसी क़द्र उस के दरजात बूलंद फरमाएगा

بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ

 لٙآاِلٰهٙ اِلّٙااللّٰهُ الْحٙـيُّ الْقٙـيُّوْمُ القٓاىِٔمُ عٙلٰى كُلِّ نٙفْسِ بِمٙا كٙسٙبٙتٙ

     तर्जमा

अल्लाह के सिवा कोई मअ़बूद नही वो ज़िन्दा है हमेशा बाक़ी रहेगा और क़ायम है हर नफ़्स पर जो तुम छुपाते हो।


रोज़े की निय्यत

 بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ

 نٙـوٙيـتُ اٙنْ اٙصُـوْ مٙ غٙـدًالِلّٰهِ تٙـعٙـالىٰ مِـنْ فٙـرْضِ رٙمٙـضٙانْ 

 तर्जमा

में ने निय्यत की कि अल्लाह के लिये इस रमज़ान का फ़र्ज़ रोज़ा कल रखूंगा

अगर दिन में निय्यत करे तो युं कहे

بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْم 

 نٙـوٙيـتُ اٙنْ اٙصُـوْ مٙ هٰـذا الْـيٙـوْمٙ لِلّٰهِ تٙـعٙـالىٰ مِـنْ فٙـرْضِ رٙمٙـضٙانْ

     तर्जमा

में ने निय्यत की कि अल्लाह के लिये इस रमज़ान का फ़र्ज़ रोज़ा रखूंगा।

नोट

जिन्हें अ़रबी न आती हो वो तर्जमा पढ़ के निय्यत करले।

रमज़ान की बरकत

इफ्तार और सह़री के वक़्त दुआ क़बूल होती है। यानि इफ्तार करते वक़्त और सह़री खा कर

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