मुस्लिमा औरत का काफ़िरा के सामने सतर (शर्मगाह गुप्तांग) खोलना कैसा

सवाल मुस्लिमा औरत का काफ़िरा के सामने सतर (शर्मगाह गुप्तांग) खोलना कैसा है

अल जवाब मुसलमान औरतों को काफिरा औरतों के सामने सतर खोलना हरगिज़ दुरुस्त नहीं, यूं ही नेक औरतों को चाहिए कि वह बदकार औरत के सामने अपने दुपट्टे को ना उतारें क्योंकि वह उसे देखकर मर्दों के सामने उसकी हुस्न व ख़ूबसूरती, बनाव सिंगार, और शक्ल व सूरत का ज़िक्र करेगी

फ़तावा आलमगीरी में है

अरबी इबारत असल किताब में देखें📚 फ़तावा आलमगीरी जिल्द 5, सफ़ह 327)

और आलाहज़रत अलैहिर्रहमह फ़रमाते हैं बाज़ारी फाजिरा फ़ाहिशा औरतों रंडियों डोमनियों को हरगिज़ हरगिज़ क़दम ना रखने दें कि उनसे हद्दे शरई की पाबंदी मुहाल आदि है, बेहयाइयों फ़हश शराइयों की ख़ोगर हैं, मना करते करते अपना काम कर गुजरेंगी, बल्के शरीफ़ ज़ादियों का उन आवारा बद वज़ो के सामने आना ही सख्त बेहूदा व बेजा है, सोहबत बद ज़हरे क़ातिल है, और औरतें नाज़ुक शीशियां जिनके टूटने को अदना ठेस बहुत होती है

📚 फ़तावा रज़वियह जिल्द 9, सफ़ह 78-निस्फ़ आखिर)


✍️कत्बा अल अबद ख़ाकसार नाचीज़ मोहम्मद शफीक़ रजा़ रिज़वी ख़तीब व इमाम सुन्नी मस्जिद हज़रत मन्सूर शाह रहमतुल्ला अलैहि बस स्टैंड किशनपुर यूपी

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