ह़राम तरीके से कमा कर राहे खुदा में खर्च करना कैसा


ह़राम तरीके से कमा कर राहे खुदा में खर्च करना 

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यह बिमारी भी काफी आम हो गयी है और लोग कमाते वक़्त यह नहीं सोचते की यह हराम है या हलाल झूट फरेब मक्कारी धोकेबाज़ी बेईमानी रिश्वतखोरी सूद ब्याज़ और मज़्दुरो की मज़्दुरी रोक कर कमाते हैं और माल जमा कर लेते है

और फिर राहे खुदा में खर्च करने वाले सखी बन जाते है और खूब मज़े से खाते और यार दोस्तो को खिलाते हैं। मस्जिद मदर्सो और खानकाहो को भी देते है मांगने वाले को भी दे देते है यह हराम खाकर राहे खुदा में खर्च करने वाले ना सखी है ना दीनदार बल्कि बड़े बेवकूफ और निरे अहमक् है 

हदीस पाक में है हराम कमाई से सद्का और खैरात क़ुबुल नहीं

📗मिश्क़ात बाब् उल कस्ब सफ्ह २४२

ये ऐसा ही है जैसे कोई बे वजह जान बूझ कर किसी की आँख फोड दे और फिर पट्टी बांधकर उसे खुश करना चाहे

भाइयों  खूब याद् रखो अस्ल नेकी और पहली दीनदारी नेक कामो में खर्च करना नहीं बल्कि ईमानदारी से कमाना है 

जो हलाल तरीके और दयानतदारी से कमाता है और ज़्यादा राहे खुदा में खर्च नहीं कर पाता है वह उससे लाखो दर्जा बेहतर है जो बेरहमी के साथ हराम कमाकर इधर उधर बाट्ता फिरता है  बाज़ दफा ऐसा देखा गया है की इस तरह हराम कमाने वाले लोगो में कुछ मदिना शरीफ और कुछ अजमेर शरीफ और कलियर शरीफ के चक्कर लगा रहे है हलान्कि हदीस शरीफ में है 

ह्ज़रत् सयिद्द्ना माज़ इब्ने जबल रदि अल्लहो अन्हो को जब हुज़ूर ﷺ ने यमन् का हाकिम और गवर्नर बना कर भेजा तो आप् उनको रुख्सत् करते हुए नसिहत फरमाते हुए उनकी सवारी के साथ साथ मदीना तैय्यबा से बाहर तशरीफ लाये जब हुज़ूरﷺ वापस होने लगे तो फरमाया ऐ माअज़ जब इस साल के के बाद तुम वापस आओगे तो मुझको नहीं पाओगे बल्की मेरी कब्र् और मस्जिद के देखोगे,हज़रत माज़् ये सुनकर शीद्द्ते फिराक की वजह से रोने लगे तो रसुलअल्लाह ﷺ ने फरमाया लोगो में मेरे सबसे ज़्यादा क़रीब परहेज़गार लोग है चाहे वो कोई हो और कही भी हो

(📗मिशकात सफह 445)

यानी हुज़ूर ﷺ ने सीधे तौर पर फरमा दिया कि अस्ल नेकी और दीनदारी और मुहब्बत नजदीकी और पास रहना और हाज़ीरी नहीं है बल्कि परहेज़गारी यानी बुरे कामो से बचना अच्छे काम करना ख्वाह् वो कहीं रह कर हो 

हज़रत उवैस करनी रदि अल्लहो तालाअन्हो हुज़ूर ﷺ के ज़माने में थे लेकिन कभी मुलाकात के लिए हाज़िर ना हुए मगर हुज़ूर ﷺ को इतने पसंद थे की उनसे मिलने और दुआए मगफिरत कराने की वसियत सहाबा ए इकराम को फरमाई थी 

📗सहीह मुस्लिम,जिल्द -2 ,सफह 399

एक हदीस शरीफ में तो हुज़ूर ﷺ ने यहाँ तक फरमा दिया कि मेरी उम्मत के एक शख्स की शफाअत् से इतने लोग जन्नत में जाएंगे की जितनी तादाद कबिलाए बनु तमीम के अफ्राद् से भी ज़्यादा होगी 

📗मिश्क़ात बाबुलहौज़ वश्श्फाअह  सफह 464

इस हदीस की शरह में उल्मा ने लिखा है कि  उस शख्स् से मुराद हज़रत सयिद्द्ना उवैस करनी रदि अल्लहो तालाअन्हो है

📕मिरक़ात जिल्द 5 सफह 278

इन अहादिसो से खूब वाज़ेह हो गया कि अस्ल मुह्ब्ब्त रहना नहीं हाज़ीरी वा चक्कर लगाना नही बल्की वो काम करना है जिससे महबुब राज़ी हो 

खुलासा ए कलाम ये है कि जो लोग नमाज़ और रोज़े और दिगर् अह्कामे शराअ के पाबन्द हैं हरामकारियो और हराम कामो से बचते हैं वो ख्वाह बुज़ुर्गो कि मज़ारात पर बार बार हाज़िरी ना देते हो वो उनसे बदरजहा बेहतर और मोहब्बत करने वाले है  जो खुदा वा रसूल की नाफरमानी करते ,हराम खाते और खिलाते रात दिन नाच गानो तमाशो और जुएँ शराब लाटरी और सिनेमो में लगे रहते हैं ख्वाह हर वक़्त ही मज़ार पर ही पड़े रहते हो

अल्बत्ता वो लोग जो अम्बिया एकराम् और औलिया एज़ाम की शान मे गुस्ताखीया करते हैं, बेअदबी से बोलते हैं और उनकी बारगाह में हाज़ीरी को शिर्क वा बिदअत् करार देते है उनके अकीदे इस्लामी नहीं उनकी नमाज़ नमाज़ नहीं उनके रोज़े रोज़े नहीं उनकी तिलावत क़ुरआन् नहीं उनकी दीनदारी इत्तीबाए रसूले अनाम नहीं क्योंकि अदब ईमान की जान है और बे अदब नाम का मुस्लमान है

इस्लिये इन बातो पर गौर करे और हराम तरह से कमाई से तौबा करे और हक़ और ईमान पर कायम रहते हुए ज़िन्दगी गुज़ारे

📚 (ग़लत फहमियां और उनकी इस्लाह सफ़्ह न.118/119/120)

✍🏻 अज़ क़लम 🌹 खाकसार ना चीज़ मोहम्मद शफीक़ रज़ा रिज़वी खतीब व इमाम (सुन्नी मस्जिद हज़रत मनसूर शाह रहमतुल्लाह अलैह बस स्टॉप किशनपुर अल हिंद)

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