वुज़ू का आग़ाज़ कब से शुरू हुआ


वुज़ू की तालीम व तरबियत का आग़ाज़

वुज़ू की तालीम व तरबियत के बारे मे लिखा है कि हज़रत जिब्राईल अलैहिस्सलाम सोने के तख़्त पर मुक़द्दस मक्का के मैदान में सत्तर हज़ार फरिश्तों के साथ नाज़िल हुए और उनके "पर" मारने पर चशमा ( नदी ) जारी हुआ, उसमें हज़रत जिबराईल अलैहिस्सलाम ने वुज़ू फरमाया और तरतीब के साथ तमाम आज़ा को ( जैसा कि वुज़ू में है ) तीन तीन बार धोया फिर कलमा ए शहादत पढ़ कर फरमाया के मुहम्मद 

صلی اللہ علیہ وسلم


उठिये और ऐसा ही वुज़ू फरमाइये जिस तरह के मैने किया है, तब रसूल ए पाक ने हज़रत जिबराईल अलैहिस्सलाम की मानिन्द वुज़ू फरमाया 

उसके बाद हज़रत जिबराईल अलैहिस्सलाम ने ख़ुशख़बरी सुनाई के आपकी उम्मत के वो लोग जो इस तरह वुज़ू करेंगे अल्लाह तआला उनके तमाम गुनाह मुआफ फ़रमा देगा और वुज़ू करने वाले का गोश्त ख़ून और रूह दोज़ख़ के लिए हराम कर देगा


गोया इस्लाम में मौजूदा वुज़ू और उसका तरीक़ा व तरतीब भी मन्श ए इलाही के मुताबिक़ ठहरा

वुज़ू की दुआओं से तक़वियत और ज़ेहनी तरबियत

अब वुज़ू के वक़्त हर उज़्व(वुज़ू का हिस्सा) धोते वक़्त की दुआओं के ख़ास असरात और उन मुबारक तालीमात से वुज़ू की बरकतों और अजरो सवाब को बयान करेंगे 

वुज़ू की नियत और दिली इरादे के बाद अगर इन दुआओं के मफ़हूम व माअना को भी पेशे नज़र रखें तो दिल व दिमाग़ पर सेहत मन्द असरात मुरत्तब होते हैं 


اعوذ باللہ من الشیطان الرجیم 

بسم اللہ الرحمن الرحیم 

اللھم اغفرلی ووسع لی فی داری و بارک لی فی رزقی,

 

तर्जुमा  ऐ अल्लाह तू मेरे गुनाह बख़्श दे और मेरे मकान में वुसअत व कुशादगी दे और मेरे लिए रिज़्क़ में बरकत दे ।

ज़ेहनी तरबियत

गुनाहों से बख़्शिश मांगने पर गुनाहों से नफरत व कराहत ख़ुद ब ख़ुद पैदा हो जाती है और मकानों रिज़्क़ में कुशादगी से इज़हारे उबूदियत(बंदगी का इज़हार) और शुक्र गुज़ारी के खयालात पैदा होते हैं और शुक्र गुज़ारी पर अल्लाह तआला और ज़्यादा अता करने का वाअदा फरमाता है जिस से उम्मीदों में क़ुव्वत और क़ल्ब में इतमिनान की रोऐं दोड़ने लगती हैं जिस से दोराने ख़ून पर अच्छा असर पड़ता है जो सेहत के लिए बहुत ज़रूरी है

कुल्ली करते वक्त़

 اللھم اعنی علی تلاوت القرآن وذکرک وشکرک وحسن عبادتک 

तर्जुमा 

ऐ अल्लाह तिलावते क़ुरआन और अपने ज़िक्रो शुक्र और तेरी हुसने इबादत ( अच्छी तरह दिल लगाकर ) में मेरी मदद फरमा।

 जेहनी तरबीयत

कुली करते वक्त़ तिलावते क़ुरआन और दिल लगाकर। इबादत करने की तरफ रग़बत दिलाई जा रही है और ग़ीबत से बचने की तरफ तवज्जोह दिलाई जा रही है

📒 इबादत और जदीद साइंस सफह नः 54)

✍🏻 अज़ क़लम 🌹 खाकसार ना चीज़ मोहम्मद शफीक़ रज़ा रिज़वी खतीब व इमाम (सुन्नी मस्जिद हज़रत मनसूर शाह रहमतुल्लाह अलैह बस स्टॉप किशनपुर अल हिंद)

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