क़ुतुब सितारे की तरफ़ पैर करके न सोने का मसअला ?


क़ुतुब सितारे की तरफ़ पैर करके न सोने का मसअला ?

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यह मसअला अवाम में काफी मशहूर हो गया है, और हिन्दोस्तान में काफी लोग यह ख़्याल करते हैं कि उत्तर की सिम्त पैर फैलाना मना है, क्योंकि उधर कुतुब (एक सितारा) है, यहां तक कि अगर कोई शिमाल (यानि उत्तर की जानिब) पैर करके लेटे या सोए तो उसको निहायत बुरा और मज़मूम जानते हैं, और मकानों में चारपाईया डालने में इस बात का खास ख़्याल रखते हैं कि सराहना या तो पश्चिम की तरफ़ हो या फिर उत्तर की तरफ़। शरीयत के एतबार से किब्ले की जानिब पांव फैलाना तो यक़ीनन बेअदबी और मैहरूमी है, इसके अलावा बाकी सिमतें (पूरब, उत्तर, दक्षिण) इस्लाम में बराबर है किसी को किसी पर कोई बरतरी और फज़ीलत नहीं

आला हज़रत मौलाना शाह अहमद रज़ा खान साहब रहमतुल्लाही तआला अलेही" इरशाद फरमाते हैं, यह मसअला जुहला में बहुत मशहूर है, "कुतुब" अवाम में एक सितारे का नाम है, तो तारे तो चारों तरफ़ है किसी तरफ़ पैर ना करें।

(📖फ़तावा रिज़विया, जिल्द 10, किस्त 2, मतबूआ बीसलपुर, सफ़्हा 158, अल'मल्फ़ूज़, जिल्द 2, सफ़्हा 57)


यानी अगर कुतुब सितारे की वजह से उत्तर की तरफ़ पैर करके सोना मना हो जाए तो सितारे चारों तरफ़ है किसी जानिब पैर फैलाना जायज़ नहीं होगा। आजकल अगर लोग इस रिवाज को मिटाने और गलतफ़हमी को दूर करने के लिए चारपाईयों की पाएँती जानिबे उत्तर रखें तो वह अजर के मुस्तहक़ होंगे, और उन्हें एक ग़लत रिवाज को मिटाने का सवाब मिलेगा।

कुछ लोग कहते हैं कि मय्यत को क़ब्र में लिटाते वक्त उसका सर कुतुब यानी उत्तर की जानिब क्यों किया जाता है ? तो बात यह है कि मय्यत का सर उत्तर की तरफ़ करने या क़ब्र में उसे दाहिने करवट लिटाने का मामूल इसलिए है ताकि उसका चेहरा किब्ले की तरफ़ हो जाए, और सोने या लेटने में किब्ले की तरफ मुंह रखने का कोई हुक्म नहीं, और सोने और लेटने वाला एक करवट पर रह भी नहीं सकता, लिहाज़ा उसका चेहरा किब्ले की तरफ़ नहीं रह पाता वह करवटें बदलता है, मुर्दे में यह सब नहीं है, और सोते वक्त भी अगर कोई किब्ले की तरफ़ चेहरा कर ले तो अच्छी नियत की वजह से यह अमल भी अच्छा है लेकिन शरअन ज़रूरी नहीं। और जो लोग उत्तर की तरफ़ पैर करके सोने को मना करते हैं उनका मक़सद तो क़ुतुब (सितारे) की ताज़ीम करना होता है ना के चेहरे को किब्ले की तरफ़ करना

नोट क़ुतुब सितारे की ताज़ीम का हुक्म मज़हब'ए इस्लाम में कहीं आया हो तो हमें भी कोई साहिब बताएं और लिखकर भेजें।


📚 (ग़लत फहमियां और उनकी इस्लाह, सफ़्हा न. 85,86,87)

✍🏻 अज़ क़लम 🌹 खाकसार ना चीज़ मोहम्मद शफीक़ रज़ा रिज़वी खतीब व इमाम (सुन्नी मस्जिद हज़रत मनसूर शाह रहमतुल्लाह अलैह बस स्टॉप किशनपुर अल हिंद)

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