नाक कान छिदवाने का रिवाज कब से हुआ



 सवाल 

नाक कान छिदवाने का रिवाज कब से है, और क्या लड़कियों का कान छेदने के लिए कोई खास हिस्सा मुक़र्रर है

अल जवाब

एक रिवायत में है के सबसे पहले नाक कान हज़रत सारह ने हज़रत हाजिरह (रज़िअल्लाहू तआला अन्हुमा) के छेदे थे, दोनों ही हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम की बीवियां थी, तभी से औरतों में कान नाक छिदवाने का रिवाज चला आ रहा है

📗 मेराजुन्नबुव्वह जिल्द 1, सफ़ह 621)

और शरअ् में लड़कियों के नाक कान छेदने का कोई खास हिस्सा मुक़र्रर नहीं, जहां चाहे जैसे चाहे छिदवा सकती हैं

मुजद्दिदे आज़म आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा ख़ान अलैहिर्रहमतू वर्रिज़वान फ़रमाते हैं

कोई ख़ास हिस्सा मुक़र्रर नहीं, हां मुशाबिहते कुफ़्फ़ार से बचना ज़रूरी है, बाज़ तरीक़े ख़ास कुफ़्फ़ार के यहां हैं, जिसे अन्वट कहते हैं, उन से बचें,

📚 फ़तावा रज़वियह शरीफ़ जिल्द 9, सफ़ह 228)

नोट👇कुछ लोग किसी मन्नत के तहत या फिर फ़िरंगी फैशन की पैरवी में लड़कों के कान छेदते हैं, और कुछ किसी बुज़ुर्ग़ के मन्नत के तहत लड़कों के चोटी रखते हैं, यह सख़्त नजाइज़ व हराम है, और ऐसी मन्नत की शरीयत में कोई हैसियत व हक़ीक़त नहीं

इमामे अहले सुन्नत आला हज़रत अलैहिर्रहमा फ़तावा अफ़्रीक़ा में फ़रमाते हैं

बाज़ जाहिल औरतों में दस्तूर है कि के बच्चे के सर पर बाज़ औलिया ए किराम के नाम की चोटी रखती हैं, और उसकी कुछ मियाद मुक़र्रर करती हैं, और उस में मियाद तक कितने ही बार बच्चे का सर मुंडे मगर चोटी बरक़रार रखती हैं, फिर मियाद गुज़ार कर मज़ार पर ले जाकर बाल उतारती हैं, यह ज़रूर महज़ बे असल व बिदअत है

📘 फ़तावा अफ़्रीक़ा सफ़ह 83)

📔 औरतों के जदीद और अहम मसाइल सफ़ह नः 32/33)

✍🏻 अज़ क़लम 🌹 खाकसार ना चीज़ मोहम्मद शफीक़ रज़ा रिज़वी खतीब व इमाम (सुन्नी मस्जिद हज़रत मनसूर शाह रहमतुल्लाह अलैह बस स्टॉप किशनपुर अल हिंद)

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