तुम तीन तलाक़ देकर ही मानोगे तो क्या हुक्म है



 ✿➺ सवाल


कल मेरे पास एक एसएमएस यह आया (तुम तीन तलाक़ देकर ही मानोगे तब बुरा मत मानना जब हमारी कोई बहन या बेटी हो) ऐसा कोई जवाब दीजिए जिससे उन्हें एक दम साफ हो जाए की शरीअत मे सब हक़ और बरहक़ और क़यामत तक हक़ रहैगा। जिन्हो ने यह बात कही वो मेरे टीचर भी रहै हैं।


➺ जवाब


इस्लाम को समझने के लिए जो लोग मुसलमान अवाम को देख कर दीन और इस्लाम का अंदाज़ा करते है की शायद इस्लाम यही है तो वो बहुत बड़ी खता पर हैं, इस्लाम को जानने के लिए आलिमों की ज़रूरत दर-पेश होती है, खुद कोई टीचर भी अपनी अक़ल से इस्लाम को नही समझ सकता, मैं इन टीचर साहब से इतनी बात पूछना चाहता हूँ, की आप ने ईको की पढ़ाई खुद ईको के टीचर्स या स्टूडेंट को देख देख कर या बुक देख कर ली, या फिर आपको बा-कायदा इसके क़ायदे क़ानून किसी ईको के जानने वाले ने सिखाए और समझाए? अगर आपका जवाब है की बुक देखने या ईको के स्टूडेंट को देखने से ईको नही आ जाती बल्कि ईको के जानने वाले के पास रूजू करना पड़ता है फिर बुक को वो समझाता है तो फिर, इन साहब ने इस्लाम या तलाक़ को लोगो से सुन कर कैसे मान लिया, क्या ये किसी आलिमे दीन के पास गये? या किसी आलिम ने इनसे कहा की हम तलाक़ पर राज़ी है 3 तलाक़ के मसले को जो आज हवा दी जा रही है उसे पेश करने का अंदाज़ ग़लत है, और जो बात सवाल मे कही की “हम 3 तलाक़ पर राज़ी है ये आपके टीचर का महज़ इल्ज़ामे बे-बुन्यादी है, ये अपनी क़ौल को साबित नही कर सकते की मुसलमान इस पर राज़ी है


✍🏻 मसअला ये है की


हम 3 तो 3 एक तलाक़ पर भी राजी नही इसका मतलब ये है की हम ये बात पसंद नही करते की कोई शख़्स गुस्से या जज़्बे मे आ कर तलाक़ दे और किसी औरत की ज़िंदगी बर्बाद कर दे, ऐसा ना तो अल्लाह को पसंद ना उसके रसूल को ना इसकी ताइद कोई आलिम करता है, अगर Govt. कोई तब्दीली चाहती है, तो ऐसे लोगों के लिए ज़रूर कोई क़ानून पास करे, जो शादी जैसे अज़ीम रिश्ते को मज़ाक बनाते है और तलाक़ देते है, हम इस हरकत के ज़रूर खिलाफ हैं, और हर अक़ल वाला इसे पसंद नही करेगा,``` *“मगर हक़ ये है की बिल फ़र्ज़ अगर किसी ने अपनी जहालत मे आ कर अब अगर तलाक दे दी तो तलाक हो जाएगी अब रहा गवरमेंट का कहना की तलाक़ नही होगी? तो दीन किसी पार्लियामेंट की देन नही की वो उसमे फिर से तब्दीली कर दे की, तलाक़ कब और कैसे होगी उसके क़ायदे क़ानून कुरआन व हदीस से तय हो चुके हैं, अगर कोई बाद तलाक़ साथ रहता है तो क़यामत मे ज़िना करने वालो मे होगा


मुसलमान 3 तलाक़ को ना-पसंद करता है और जहा तक मुमकिन हो घर का मामला आखरी कोशिश तक सुलझाना चाहिए, यही तालीम इस्लाम की है, इस्लाम घर बसने पर ज़ोर देता है, इसीलिए बिधवा को निकाह की इजाज़त है, ना की मरने की, फिर भी कोई अपनी जहालत से अपना घर तोड़ दे तो उसमे शरीअत का कोई दोश नही, ज़हर खाने वाला अपनी मौत का खुद ज़िम्मेदार है, खाएगा तो मरना ते है, मगर ज़हर तय्यार करने वाले इसकी इजाज़त नही देते की कोई शरीअत तब्दील नही हो सकती, आज भी मुसलमान अपने तलाक़ के मसअले पर उलमा से फ़तवा लेते है और लेते भी रहेंगे, अदालत मे जाने वालो की तादाद बहुत ना के बराबर है, छुरी आपके पास है, ज़हर आपके पास है, सही इस्तेमाल करो या ग़लत, मगर ग़लत इस्तेमाल करने वाला खुद मौत का ज़िम्मेदार है, ना की छुरी की फॅक्टरी या ज़हर बनाने वाला, चाहै मौत ज़ेहर से साबित हो जाए तब भी ज़हर के फ़ॉौले मे कोई तब्दीली नही हो सकती, लिहाज़ा आपके टीचर का ये बेजा इल्ज़ाम है की मुसलमान तलाक़ पर राज़ी है हक़ ये है की मुसलमान तलाक़ को हक़ समझता है, मगर इस पर खुश और राज़ी नही


📚ह़वाला पर्दादारी, सफा नं.74

     

✒️मौलाना अब्दुल लतीफ न‌ईमी रज़वी क़ादरी बड़ा रहुवा बायसी पूर्णियाँ बिहार

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