क्या जमाअत से नमाज़ पढ़ने वाले को इमाम के साथ दुआ मांगना भी ज़रूरी है ?
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हर नमाज़ सलाम फेरने पर मुकम्मल हो जाती है, उसके बाद जो दुआ मांगी जाती है यह नमाज़ में दाखिल नहीं अगर कोई शख्स नमाज़ पढ़ने यानी सलाम फेरने के बाद बिल्कुल दुआ ना मांगे तब भी उसकी नमाज़ अदा हो जाती है... अलबत्ता एक फज़ीलत से मेहरूमी और सुन्नत की ख़िलाफ़ वर्ज़ि है। बहुत जगह देखा गया है कि इमाम लोग बहुत लंबी-लंबी दुआएं पढ़ते हैं और मुक्तदी कुछ ब'खुशी और कुछ बेरगवती से मजबूरन उनका साथ निभाते हैं, और कोई बग़ैर दुआ मांगे या थोड़ी दुआ मांगकर इमाम साहब का पूरा साथ दिए बगैर चला जाए तो उस पर ऐतराज़ करते हैं और बुरा जानते हैं,, यह सब उनकी ग़लतफ़हमियां है इमाम के साथ दुआ मांगना मुक्तदी पर हरगिज़ लाज़िम और ज़रूरी नहीं है। नमाज़ पूरी होने के बाद फौरन मुख़तसर दुआ मांग कर भी जा सकता है। और कभी किसी मजबूरी की बिना पर बगैर दुआ मांगे चला जाए तब भी नमाज़ सही और पूरी हो जाती है हवाले के लिए
📚 फतावा रज़विया जिल्द 3 सफ़्हा नंबर 278 देखें
📚 (ग़लत फेहमियां और उनकी इस्लाह, सफ़्हा न. 48)
✍🏻 अज़ क़लम 🌹 खाकसार ना चीज़ मोहम्मद शफीक़ रज़ा रिज़वी खतीब व इमाम (सुन्नी मस्जिद हज़रत मनसूर शाह रहमतुल्लाह अलैह बस स्टॉप किशनपुर अल हिंद)
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