माँ बाप को अपने बच्चों को भला बुरा कहना कैसा

 


✿➺ सुवाल


कभी मां बाप अपनी औलाद को कोसते हैं किसी की तो ज़बान बहुत बुरी होती है कुछ भी कह देते है तो क्या औलाद पे वो लानत बैठती है जब औलाद की ग़लती ना हो बस माँ का मिजाज़ ही गुस्सेल हो? कभी भाई बहैन मे तकरार होती है गुस्से मे बोलते है तू मर गई मेरे लिए, क्या रिश्ता ख़तम हो जाता है?


❀➺ जवाब


औरत जिस वजुहात से जहन्नम मे जाएगी उसमे से एक कोसना और लानत करना भी होगा, मगर जो बद-दुआ दी गई अगर कुबूलियत की घड़ी हुई तो बद-दुआ असर लाएगी, और हदीस मे कोसने, बद-दुआ देने को मना किया गया, मगर अल्लाह (बिला वजह शरा) बद-दुआ को इतनी जल्दी कुबूल नही करता जैसे आम दुआ को।


हदीस शरीफ मे है अपनी जानों पर बद-दुआ ना करो और अपनी औलाद पर बद-दुआ ना करो, और अपने खादिमो पर बद-दुआ ना करो, कही कुबूलियत की घड़ी से मावाफ़ीक़ ना हो


तिर्मिजि शरीफ मे है हुज़ूरﷺ ने फरमाया (बेशक़ मैने अल्लाह से सुवाल किया की, किसी प्यारे की प्यारे पर बद-दुआ कुबूल ना फरमाये)


तफ़सीर सिरात उल जीनान जिल्द: 4, सफा:291, पर है अगर अल्लाह लोगों की बद-दुआएँ जैसे के वो गुस्से के वक़्त, अपने लिए, अपने आल व औलाद व मां के लिए, करते हैं, और कहते हैं हम हलाक़ हो जाएँ, खुदा हमे गा़रत करे, बर्बाद करे और ऐसी ही कलिमे, अपनी औलाद और रिश्तेदारो के लिए कह गुज़रते हैं, जिसे उर्दू मे कोसना कहते हैं, अगर वह दुआ ऐसी जल्द कुबूल कर ली जाती जैसे जल्दी वह, दुआ खैर कुबूल होने मे चाहते हैं, तो उन लोगो का खतिमा हो चुका होता, और वह कब के हलाक़ हो गये होते, लेकिन अल्लाह अपने करम से दुआ ए खैर कुबूल फरमाने मे जल्दी करता है, और दुआ ए बद के कुबूल मे नही


➺ रहा लानत करना तो लानत करना काफ़िर पर भी जाइज़ नही, तो मुसलमान (औलाद) पर कैसे जाइज़ हो जाएगी


सही मुस्लिम मे है "बहूत लानत करने वाले क़यामत के दिन, गवाह वा शफ़ी ना होंगे,"


➺ अबु दावूद मे है मुसलमान की लानत मिस्ल उसके क़तल के है


➺ सही बुखारी मे है मैने औरतों को दोज़ख़ मे बा -कसरत देखा, फरमाया किस वजह से कहा- तुम लानत बहूत करती हो


➺ फ़ाज़ईले दुआ सफहः 188, पर है किसी मुसलमान पर लानत ना करे... यूँही मच्छर, जानवर पर भी लानत माना है"

 लिहाज़ा इन दलायल से ये बात साबित होती है की, किसी भी मुसलमान पर लानत करना मना है चाहै वो गुनाहै कबीरा करता हो की ईमान उसके साथ है, और कबीरा से ईमान नही जाता इससे उन औरतों को इब्रत लेनी चाहिए जो गै़र तो ग़ैर, बात बात पर अपनी औलाद और शोहर और घर वालो को लानत करती हैं, इसी वजह से जहन्नम मे ज़्यादा हैं,फकत कह देने से रिश्ता ख़तम नही होता।


📚ह़वाला पर्दादारी, सफा नं.42

     

✒️मौलाना अब्दुल लतीफ न‌ईमी रज़वी क़ादरी बड़ा रहुवा बायसी पूर्णियाँ बिहार

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