क्या कहकहा लगाने से वजु मकरुह हो जाता है




सवाल


क्या फ़रमाते हैं उल्मा ए किराम और मुफ़्तियाने अज़्ज़ाम इस मसअले में बा बुज़ु होने के बावजूद कोई केहका लगाए तो क्या उसका बुज़ु मकरुह हो जायेगा?


जवाब



नमाज़ के अलावा में केहका लगाने से बुज़ु नहीं टूटता है और न मकरुह होता है। ये केहके से बुज़ु जो टूटता है सिर्फ नमाज़ ही के साथ खास है, वो भी जागे हो तो।


फ़तावा रज़वियाह शरीफ में है - नमाज़ ए जनाज़ा के सिवा और नमाज़ में बालिग़ आदमी जागते में ऐसा हंसे कि औरों तक हंसी की आवाज पहुंचे तो बुज़ु भी जाता रहेगा।

बह़वाला 📚 फ़तावा रज़वियाह जिल्द 1, सफह 579

बा बुज़ु शख़्स केहका लगाए तो मुस्तहब है कि फिर बुज़ु करले। जैसा कि बहार-ए-शरीअत में है - केहका लगाने, लगू (बे मअना) अशआर पढ़ने और ऊँट का गोश्त खाने, किसी औरत के बदन से अपना बदन बे हाइल मस हो जाने से और बा बुज़ु शख़्स के नमाज़ पढ़ने के लिए इन सब सूरतों में बुज़ु मुस्तहब है।

बह़वाला 📚 बहार-ए-शरीअत जिल्द 1, हिस्सा 2, सफह 302

अगर नमाज़ के अन्दर सोते में या नमाज़ ए जनाज़ा या सज्दा ए तिलावत में केहका लगाया तो बुज़ु नहीं जायेगा, वो नमाज़ या सज्दा फासिद है।


والله تعالى اعلم باالــــــصـــــواب




कत्बा मोहम्मद अशफ़ाक अत्तारी ब मुकाम नेपाल 

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