ग्रुप रज़ा कमेटी सेमरबारी दुदही कुशीनगर
सवाल
हज़रत इन 3 सवालों का जवाब दें मेहरबानी होगी
(1) फांसी का वक़्त फज़र के बाद और सूरज निकलने से पहले ही क्यों मुक़र्रर किया गया है ?
(2) वह कौन सी चीज़ है जो आपके पास ना हो तो निकाह नहीं हो सकता और हो तो जनाज़ा नहीं हो सकता ?
(3) अगर लड़की की लाश मिले तो कैसे पता चलेगा वह मुसलमान है या काफिर ?
साईल नूर जमाल रज़वी
जवाब
इसके कई वजूहात हो सकते हैं
(1) उम्मे साबीक़ा पर जब अल्लाह तआला का अज़ाब नाज़िल हुआ करता था तो उमुमन सुब्ह का वक़्त होता था
जैसा कि हज़रत लूत अलैहिस्सलाम की क़ौम पर अज़ाब का वक़्त फरिश्तों ने सुब्ह का बताया
📚 (पारा 12 सुर ए हुद आयत 81)
लिहाज़ा फांसी भी एक अज़ाब है इसकी मुनासिबत से सुब्ह का वक़्त मुक़र्रर किया हो
(2) मुजरिम के लिए सुब्ह का वक़्त मुक़र्रर किया ताकि वह सारी रात अल्लाह तआला की बारगाह में अपने किए पर तौबा कर ले और फज़र की नमाज़ पढ़ कर अपने जुर्म को तस्लीम करते हुए मौत को गले लगा ले
(3) सुब्ह के वक़्त इंसान की आज़ा तरोताज़ा होते हैं जिस से फांसी के वक़्त तकलीफ कम होती है जब कि दिन के वक़्त आज़ा सख्त होते हैं और मुजरिम को ज़्यादा तकलीफ होती है इसी लिए फांसी देने के लिए सुब्ह के वक़्त को तरजी दी जाती है सुब्ह में फांसी देने की एक वजह यह भी है कि फांसी दिए जाने की खबर का असर मुआशरे पर मनफी अंदाज मैं पड़ता है
लिहाजा मुआशरे मैं मौजूद अफराद को कोई सदमा ना पहुंचे इसलिए फांसी देने का वक़्त ऐसा मुक़र्रर किया गया है जब सब लोग सो रहे होते हैं
(2) रुह एक ऐसी चीज़ है जब इंसान मैं मौजूद हो तो वह ज़िदा तसव्वुर किया जाता है और जब रूह निकल जाए तो मुर्दा. और निकाह ज़िंदा इंसान का होता है और जनाज़ा मुर्दा इंसान का, वाजेह हो गया अगर रूह जिस्म में मौजूद नहीं तो निकाह नहीं हो सकता क्योंकि निकाह जिंदों का होता है मुर्दों का नहीं, और अगर रुह मौजूद है तो जनाज़ा नहीं क्योंकि जनाज़ा मुर्दों का होता है ज़िंदों का नहीं
(3) अगर लाश मुस्लिम आबादी से मिली है या उसकी वजअ क़तअ मुसलमानों वाली हो या कोई अलामत ऐसी हो जिस से मुसलमान होना साबित होता हो तो उसको मुसलमान तसव्वुर किया जाएगा और मुसलमान मैयत की नीयत से गुस्ल कफन नमाज़ ए जनाज़ा और दफन सर अंजाम दिया जाएगा वरना नहीं
📚 (बहार ए शरीयत जिल्द 1 सफा 518)
📚 (फतावा ए आलमगिरी जिल्द 1 सफा 174)
✍🏼 अज़ क़लम हज़रत मौलाना मोहम्मद करीमुल्लाह रज़वी साहब किबला
✍🏻 हिंदी ट्रांसलेट मोहम्मद रिज़वानुल क़ादरी सेमरबारी (दुदही कुशीनगर उत्तर प्रदेश)
ماشااللہ حضرت بہت خوب
जवाब देंहटाएंएक टिप्पणी भेजें