पानी से पहले ढेले का इस्तेमाल


पानी से पहले ढेले का इस्तेमाल और जदीद साइंस

ढेलों की कोई तादाद शर्त नहीं बल्कि जितने से सफाई हो जाए अगर एक से सफाई हो गईं तब भी सुन्नत अदा हो गई अलबत्ता मुसतहब यह है कि ताक़ हों और कम से कम तीन हों 

पानी से पहले ढेले लेने में निजासत हाथ को नहीं लगती जिसकी वजह से निजासत के जरासीम हाथ को नहीं लग पाते यह बात तजुर्बात से साबित हो चुकी है जरासीम के मुलव्विस हाथों से अकसर घरों में दस्त पेचिस की कई क़िसमों का फैल जाना एक आम बात हो गई है इस लिए तहारत से पहले ढेले इस्तेमाल करने से निजासत बहुत कम हाथ को मुलव्विस करती है जिसको बा आसानी पानी से साफ भी कर लिया जाता है

साइंस की आखिरी रिसर्च के मुताबिक़ मिट्टी में नोशादर और आला दर्जे के दाफे तअफ्फुन अज्ज़ा मोजूद हैं चूंके पाख़ाना व पेशाब तमाम फुज़ला हैं और जरासीमों से लबरेज़ हैं तो इसका इंसान की खाल को लगना इन्तेहाई नुकसान दह है और अगर उसके कुछ अज्ज़ा खाल पर चिपक जाएँ या हाथ पर रह जाएँ तो बे शुमार मरजों के ख़तरात फैलने का अन्देशा रहता है 

डाकटर हलूक ने लिखा है कि ढेले के इस्तेमाल ने साइंसी और तहक़ीक़ी दुनिया को बहुत ज़्यादा हैरत में डाल रखा है क्योंकि मिट्टी के तमाम अज्ज़ा जरासीमों के क़ातिल हैं जब ढेलों का इस्तेमाल होगा तो पोशीदा आज़ा पर मिट्टी लगने की वजह से उन पर बाहरी तोर पर लगे तमाम जरासीम मर जाएंगे बल्कि तहक़ीक़ात ने यह साबित कर दिया है कि मिट्टी का इस्तेमाल इंसान को शरमगाह के कैंसर से बचाता है

अलगरज़ यह मिट्टी से बना हुआ इंसान फिर भी मिट्टी से ही सुकून पाएगा चाहे दुनिया के तमाम फारमोले इस्तेमाल कर ले

📘 इबादत और जदीद साइंस, सफह 18)

कत्बा अल अब्द खाकसार नाचीज़ मोहम्मद शफीक़ रजा़ रज़वी ख़तीब व इमाम सुन्नी मस्जिद हज़रत मन्सूर शाह रहमतुल्लाह अलैहि बस स्टैंड किशनपुर जि़ला फतेहपुर उत्तर प्रदेश


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