जुलूस ए मोहम्मदी में औरतों को जाना कैसा



सवाल

अस्सालामु अलैकुम व रहमतुल्लाहि व बरकातुहू क्या फरमाते है उलेमा ए एकराम व मुफ्तीयान एज़ाम इस मसले के बारे में कि बारह रबीउल अव्वल शरीफ़ के जुलूस में औरतों का आना कैसा है बराए करम जवाब इनायत फरमाए एैन नवाजिश होगी फक़्त वस्सालाम

अल जवाब जुलूसे मुहम्मदी यानी माहे रबीउन्नूर के जुलूस में औरतों को आना सख़्त मना बल्के नाजाइज़ व हराम और गुनाह है

फ़सादे ज़माना और मर्दो के इख़्तिलात के सबब जब औरतों को किसी जुमा व जमाअत, नमाज़े जनाज़ा और ईदैन वगैरह में हाज़िरी की इजाज़त नहीं ख्वाह वह जवान हो या बुढ़िया

जैसा के हज़रत अल्लामा इब्ने आबेदीन शामी रहमतुल्लाही तआला अलैह फ़रमाते हैं

अरबी इबारत असल किताब में मुलाहिज़ा हो

📚 तन्वीरुल अबसार मअ् दुर्रे मुख़्तार)

और हज़रत अल्लामा शैख़ इब्राहीम हंबली अलैहिर्रहमतू वर्रिज़वान तहरीर फ़रमाते हैं

ان يكون فى زماننا للتحريم لما فى خرو جهن من الفساد،


मतलब यह है कि इस ज़माना में औरतों का बाहर निकलना हराम है, कि उनके निकलने में फ़साद हैं

📚 ग़ुनियह शरहे मुनियह सफ़ह 594)

और कुतुबे मुअतमदह में है

अइम्मा ए दीन ने जमाअत व जुमा और ईदैन तो बहुत दूर की बात है वअज़ की हाजिरी से भी मुतलक़न मना फरमा दिया अगरचे बढ़िया हो अगरचे रात हो

हज़रत फ़ारूक़े आज़म रज़िअल्लाहू तआला अन्ह तो जो औरतें मस्जिद में आतीं उसे कंकरियां मार कर बाहर निकाल देते थे, और हज़रत इमाम इब्राहीम जो इमामे आज़म अबू हनीफा के उस्ताद के उस्ताद हैं अपनी औरतों को मस्जिद में ना जाने देते थे

📗 जमलुन्नूर फी नही निसा अन ज़ियारतुल क़ुबूर, सफ़ह 15)

जब्के मज़कूरा बिल इबादात ऐसी है कि उनमें इंसान हुज़ूरे क़ल्ब के साथ बारगाहे खुदा वंदी में हाज़िर होता है फ़ित्ने का अंदेशा बहुत कम होता है लेकिन उसके बावजूद सख़्ती के साथ रोक दिया गया

तो जुलूस में औरतों का आना क्योंकर जाइज़ होगा कि यहां तो मर्द औरत साथ साथ कभी आगे कभी पीछे कुछ बेपर्दा कुछ पर्दे में भरपूर ज़ेबो ज़ीनत और अराइश व ज़ेबाइश के साथ होती हैं जहां फ़ित्ना ही नहीं बल्कि फ़ित्ना बर फ़ित्ना होने का अंदेशा होता है क्यों कर जाइज़ होगा

खुलासा यह है कि किसी भी सूरत में शरअ की तरफ़ से जुलूस में औरतों को आने की इजाज़त नहीं बल्कि नाजाइज़ व हराम और गुनाह है

मैं अपने तमाम इस्लामी भाइयों से दरख्वास्त करता हूं कि आप 12 रबी उल अव्वल के मुबारक दिन में खूब खुशियां मनाइये अपने दुकानों और मकानों में झंडे लगाइये, चरागा (रोशनी) कीजिए मिठाइयां तक्सीम कीजिये नात ख़्वानी की महफिल सजाईये मुबारकबादी पेश कीजिये आक़ा सल्लल्लाहू तआला अलैही वसल्लम की बारगाह में दुरूद व सलाम नज़राना ए अकीदत निछावर कीजिये रोज़ा रखिए क़ुराने पाक की तिलावत कीजिये सदक़ात व खैरात कीजिये और जुलूस भी निकालिये लेकिन जहां यह सब कुछ हो वही हमें यह भी चाहिए कि अपने घर की बहू बेटियों मां और बहनों को जुलूस में आने से सख्ती के साथ मना करें वरना खुद गुनाहगार और मुस्तहिक़े अज़ाबे नार होंगे इसलिए के शरअ में औरतों के लिए यह नाजाइज़ व हराम क़रार दिया है कि वह बिला ज़रूरते शरई अपने घरों से निकलें लिहाज़ा अपने घर की औरतों को समझाइये कि वह इस तरह बेपर्दा निकलकर अल्लाह व रसूल के हुक्म की नाफरमानी ना करें

अल्लाह तआला ख़ुद फ़रमाता है

तर्जमा औरतों की नाफरमानी का तुम्हें अंदेशा हो तो उन्हें समझाओ और उनसे अलग सो और उन्हें मारो

📚 पारा 5, सूरह निसा आयत 34)

लिहाजा हमें घर की औरतों को जुलूस वगैरह में जाने से मना करना चाहिए वरना अगर पूछगछ होगी तो क्या जवाब देंगे इसलिए कि हर आदमी अपने घर का जिम्मेदार और हाकिम है और हर हाकिम से उसके मातहतों के मुताल्लिक सवाल होगा जैसा के हदीस ए पाक में है

तुम सब अपने मातहतों के हाकिम व जिम्मेदार हो और हर हाकिम जिम्मेदार से उसके मातहत के बारे में पूछा जाएगा

📘 बुख़ारी जिल्द 01 सफ़ह 171)

इसलिए उनको मना करके खुद भी और उनको भी आज़ाबे दोज़ख़ से बचाइए जैसा के अल्लाह तआला फ़रमाता है

तर्जुमा ऐ ईमान वालो बचाओ अपनी जानो और अपने घरवालों को जहन्नम से

📚 पारा 28 अत्तहरीम आयत 6)

और नबी पाक सल्लल्लाहू तआला अलैही वसल्लम इरशाद फ़रमाते हैं जब लोग कोई बुरा काम देखें और उसको ना मिटाएं तो अन करीब खुदा ए तआला उन सबको अपने अज़ाब में मुब्तिला फरमाएगा

📘 मिश्कात शरीफ़ सफ़ह 436)

📔 औरतों के जदीद और अहम मसाइल सफ़ह. 101//102//103//104)

✍🏻 अज़ क़लम 🌹 खाकसार नाचीज़ मोहम्मद शफीक़ रज़ा रिज़वी खतीब व इमाम (सुन्नी मस्जिद हज़रत मनसूर शाह रहमतुल्लाह अलैह बस स्टॉप किशनपुर अल हिंद)

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