क्या औरतों को जानवर ज़िब्ह करना नाजाइज़ है ❓



क्या औरतों को जानवर ज़िब्ह करना नाजाइज़ है ❓

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औरत भी जानवर जुबह कर सकती है और उसके हाथ का जुबह किया हुआ जानवर हलाल है मर्द और औरत सब उसे खा सकते हैं 

मिश्कात शरीफ किताबुस्सैद वलज़िबाह सफा ३५७ पर बुख़ारी शरीफ़ के हवाले से इसके जाइज़ होने की साफ हदीस मौजूद है जिसमें यह है कि रसूलुल्लाह सल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने एक लड़की के हाथ की जुबह की हुई बकरी का गोश्त खाने की इजाज़त दी 

मज़ीद तफसील के लिए देखिए सय्यिदी मुफ्ती आज़म हिन्द अलैहिर्रहमह का फ़तावा मुस्तफ़विया जिल्द सोम सफा १५३ और फ़तावा रज़विया जिल्द ८ सफा ३२८ और सफा ३३२

खुलासा यह कि औरतों के लिए भी मर्दो की तरह हलाल जानवरों और परिन्दों को जुबह करना जाइज़ है जो इसे गलत कहे, वह खुद गलत और निरा जाहिल बल्कि शरीअत पर इफ्तिरा करने वाला है समझदार बच्चे का जुबह किया हुआ जानवर भी हलाल है और मुसलमान अगर बदकार और हरामकार हो तो ज़बीहा उसका भी जाइज़ है, नमाज़, रोजे का पाबन्द न हो, उसके हाथ का भी जुबह किया हुआ जानवर हलाल है हाँ नमाज़ रोज़ा छोड़ना और हराम काम करना इस्लाम में बहुत बुरा है

दुर्रमुख्तार में है  ज़िबह करने वाले के लिए मुसलमान और आसमानी किताबों पर ईमान रखने वाला होना काफ़ी है अगरचे औरत ही हो 

📚 (दुर्रेमुख़्तार, किताबुज्जबाएह, जिल्द २, सफ़हा २२८, मतब मुजतबाई)

आलाहजरत मौलाना शाह अहमद रजा खां अलैहिरहमह फरमाते हैं  जिब्ह के लिए दीने समावी (आसमानी दीन) शर्त है आमाल शर्त नही

📚 (फतावा रज़विया जिल्द  सफा ३३३)

हाँ जो लोग काफिर गैर मुस्लिम हों या उनके अकीदे की खराबी या रसूलुल्लाह सल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की शान में गुस्ताखी की वजह से उन्हें इस्लाम से खारिज व मुरतद करार दिया गया है, उनके हाथ का ज़बीहा हराम व मुरदार है

📚 (ग़लत फहमियां और उनकी इस्लाह, सफ़्हा न. 160,161)

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✍🏻 अज़ क़लम 🌹 खाकसार ना चीज़ मोहम्मद शफीक़ रज़ा रिज़वी खतीब व इमाम (सुन्नी मस्जिद हज़रत मनसूर शाह रहमतुल्लाह अलैह बस स्टॉप किशनपुर अल हिंद)

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