औरत का कफ़न मायके वालो के ज़िम्मे डालना ?

 


औरत का कफ़न मायके वालो के ज़िम्मे डालना ?

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यह एक ग़लत रिवाज है यहां तक के बाअज़ जगह मायके वाले अगर नादार मुफ़लिस हो तब भी औरत का कफ़न उनको देना ज़रूरी ख्याल किया जाता है, और उन से ज़बरदस्ती लिया जाता है, और उन्हें बिलावजह सताया जाता है, हालांकि इस्लाम में ऐसा कुछ नहीं। मसअला यह है कि मययत का कफ़न अगर मय्यत ने माल छोड़ा हो तो उसी के माल में से दिया जाए, और उसने कुछ माल ना छोड़ा हो तो ज़िनदगी में जिसके ज़िम्मे उसका नान ओ नफ़क़ा (खाना खर्चा वग़ैरह) था वह ही कफ़न दे, और औरत के बारे में खास तौर से यह है कि उसने अगचे माल छोड़ा भी हो तब भी उसका कफ़न शौहर के ज़िम्मे है

📚(फ़तावा रिज़विया, जिल्द 23, सफ़्हा 611📚मतबूआ रज़ा फाउंडेशन, लाहौर, 📚बहारे शरीअत, हिस्सा 4, सफ़्हा 139)

खुलासा यह के औरत का कफ़न मायके वालों के ज़िम्मे ही लाज़िम ख्याल करना और बहर हाल उनसे दिलवाना एक ग़लत रिवाज है जिस को मिटाना ज़रूरी है


📚 (ग़लत फहमियां और उनकी इस्लाह, सफ़्हा न. 60)


✍🏻 अज़ क़लम 🌹 खाकसार ना चीज़ मोहम्मद शफीक़ रज़ा रिज़वी खतीब व इमाम (सुन्नी मस्जिद हज़रत मनसूर शाह रहमतुल्लाह अलैह बस स्टॉप किशनपुर अल हिंद)

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