सवाल
हमारे गाँव में एक मस्जिद है फजर की नमाज़ के बाद इमाम और चंद मुक़तदी मस्जिद में ही बैठते हैं और अपना दुख सुख सुनते सुनाते हैं और भी दुनियावी बातें करते हैं और दीनी मस्अला वगैरहभी पूछ लेते हैं और उन्हीं मुक़तदी लोगों में एक आदमी खैनी बनाता है दो चार मिन्ट गुफ्तगू के बाद सब लोग खैनी खा कर अपने अपने घर चले जाते हैं क्या इस तरह करना सही है, जवाब इनायत करें
जवाब
मस्जिद में दीनी मसाइल की तालीम की तो इजाज़त है जबके उस पर मुअल्लिम उजरत ना लेता हो और अगर तालीम पर उजरत लेता हो तो उसको भी मस्जिद में उसकी इजाज़त नहीं, इसी तरह मस्जिद में दुख सुख सुनने सुनाने की भी बिलकुल इजाज़त नहीं, उल्मा ए किराम फरमाते हैं कि मुबाह़ बातें भी मस्जिद में करने की इजाज़त नहीं, और खैनी में एक क़िस्म की बदबू होती है लिहाज़ा उसकी भी इजाज़त नहीं, खैनी तो खैनी उल्मा फरमाते हैं कि
मस्जिद में कच्चा लहसुन या प्याज़ खाना या खा कर जाना जाइज़ नहीं जब तक उसकी बू बाकी हो, क्योंकि फरिशतों को उस से तकलीफ होती है, आला ह़ज़रत फतावा रज़वियह शरीफ जिल्द 6 सफह 403 में फरमाते हैं कि मस्जिद में दुनिया की बातें नेकियों को इस तरह खाती है जैसे चौपाये घास को हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि आखिर ज़माने में कुछ लोग होंगे जो मस्जिद में दुनिया की बातें करेंगे, अल्लाह को उन लोगों से कुछ काम नहीं और जो लोग मस्जिद में दुनिया की बातें करते हैं उनके मुँह से वो गंदगी बदबू निकलती है जिस से फरिश्ते अल्लाह अज़्ज़ा व जल के हुज़ूर उनकी शिकायत करते हैं, लिहाज़ा मस्जिद में दुख दर्द सुनना सुनाना खैनी खाना, दुनिया की बातें करना हरगिज़ जाइज़ नहीं सबको इस से बाज़ आना चाहिए
📚बहारे शरीयत हिस्सा 3 सफह 154
📚फतावा रज़वियह शरीफ जिल्द 6 क़दीम सफह 403
✍🏻 अज़ क़लम 🌹 खाकसार ना चीज़ मोहम्मद शफीक़ रज़ा रिज़वी खतीब व इमाम (सुन्नी मस्जिद हज़रत मनसूर शाह रहमतुल्लाह अलैह बस स्टॉप किशनपुर अल हिंद)
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