औरतों का इज्तिमा करना कैसा नेज़ तक़रीर करना कैसा

औरतों का इज्तिमा करना कैसा नेज़ तक़रीर करना कैसा 



 ✿➺ सुवाल


औरतें भी इज्तिमा का काम करती है और तक़रीर भी करती है और तक़रीर के बाद सलाम भी पड़ती है मईक मे यह सब करना ठीक है?


❀➺ जवाब


इस सुवाल मे 3 अलग अलग सुवाल दर्ज हैं,⤵️


•➺ 1. औरतें इज्तिमे के काम करती है अगर ये औरते दीने- मतीन की तब्लीग के लिए घर से जाती है और पर्दे की शराइत पर किसी के घर जा कर औरतें जमा होती है, फिर कुछ नात, कुरआन, नमाज़ वग़ैरह सीखती है, और इनके जाने की इजाज़त घर मे शोहर या गैर शादी शुदा को वालिद की तरफ से है तो हर्ज नहीं, बल्कि सवाब का काम है, की आज कल जहालत औरतो मे ज्यादा पाई जाती है, तो अगर कोई काबिल औरत ये ज़िम्मा उठाए की हफ्ते मे एक या दो दिन, घर के आसपास ही या अपने घर जहाँ शरई तोर पर पर्दा मुसलमान मर्द हो और गैर मर्द का दखल ना हो और इल्मे दीन सीखे सिखाए तो अच्छा है, और इल्म सीखना खास कर अपनी ज़रूरत के मसाइल तो औरत पर फ़र्ज़ है, मगर औरत 92 K/M से ज़्यादा तन्हा सफ़र नही कर सकती, और इलाके मे भी आसपास हो और मगरिब से पहले अपने घर आ जाए, अगर यही मामला है तो इलाके वाले सुन्नी मुसलमानो को चाहिए की वो भी अपने घर से बच्चियों को वहा भेजे ताकि वो भी कुछ फ़र्ज़, अदब, पर्दा, नमाज़ वगेरा, सीख सके, वरना घर मे सिवाए टीवी, फिल्म सीरियल के कुछ होता देखा नहीं जाता, और औरत को गैर मर्द से पढ़ने से बेहतर है की इसी तरह औरतो के इज्तिमे मे भेजा जाए ताकि कुछ हासिल हो

हदीस मे आया की अगर तेरे ज़रिए से अल्लाह किसी एक शख्स की भी इस्लाह फरमा दे तो ये तेरे लिए हर उस चीज़ से बेहतर है जिस पर सूरज चमकता है, जबकि ये औरतें सुन्नी हो ना की देवबंदी, वरना देवबंदिओ की तालीम मे घर से औरतो को भेजना या जाना हराम है


•➺ 2. औरते तक़रीर करती है ```अगर औरत किताब देख कर तक़रीर करती है और अच्छा पढ़ना जानती है और अपनी तरफ से कुछ ग़लत व्यानी नही करती तो सिर्फ उर्दू या हिन्दी पढ़ने वाली औरत को इस तरह देख कर ब्यान करना जाइज़ है, फिर चाहे वो आलिमा ना हो, और अगर वो (माशा अल्लाह) आलिमा है तो आलिमा को बग़ैर देखे तकरीर जाइज़ है, और आलिमा नही तो ग़ैर आलिमा को बे देखे वाज़ (ब्यान) हराम है और उसका सुनना भी हराम


•➺ 3. औरते MIC पर सलाम भी पढ़ती है औरतों का बाद इज्तिमा सलाम पढ़ना जाइज़ है, जबकि आवाज़ गैर तक ना जाए और अगर आवाज़ जाने का ख़तरा हो तो बगैर मईक के ही पढ़े, और मईक का हुक्म उपर के सभी सुवाल मे लगाया जाएगा, की औरत ब्यान, सलाम मे मईक जब ही इस्तेमाल करे जब आवाज़ बाहर ना जाए, मसलन, किसी टॉप फ्लोर पर इज्तिमा या सलाम हो रहा है और मईक की आवाज़ उस फ्लेट से बाहर नहीं आती या उस कमरे से बाहर नही आती तो मईक मे पढ़ने मे हर्ज नही वरना मईक से परहेज़ करना चाहिए


ह़वाला 📗 पर्दादारी, सफा नं.15,16

   


 ✒️मौलाना अब्दुल लतीफ न‌ईमी रज़वी क़ादरी बड़ा रहुवा बायसी पूर्णियाँ बिहार 

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